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वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवों का उत्कृष्ट काल पल्योपम के असंख्यातवें भाग है । २०२।
अस्तु सात-आठ जन, अथवा उत्कर्ष से असंख्यातश्रेणि मात्र मिथ्यादृष्टि जीव देव, अथवा नारकियों में उत्पन्न होकर वैक्रियिकमिश्रकाययोगी हुए और अन्तर्मुहूर्त से पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुए। उसी समय में ही अन्य मिथ्यादृष्टि जीव वैक्रियिकमिश्रकाययोगी हुए। इस प्रकार से एक, दो, तीन आदि लेकर पल्योपम के असंख्यातवें भाग-मात्र वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों की शलाकाएं पाई जाती है। इससे वैक्रियिकमिश्रकाययोग के काल को गुणा करने पर पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण वैक्रियमिश्रकाययोग का काल होता है।
__ असंयतसम्यग्दृष्टियों का काल भी इसी प्रकार से जानना चाहिए। विशेष वात यह है कि ये असंयतसम्यगदृष्टि जीव एक समय में पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र उत्कृष्ट रूप से उत्पन्न होते हैं, क्योंकि इस उत्पन्न होने वाली राशि से वैक्रियिकमिश्रकाययोग का काल असंख्यातगुणा है।
शंका-यह कैसे माना जाता है।
समाधान-आचार्यपरम्परागत उपदेश से जाना जाता है कि एक समय में उत्पन्न होने वाली असंयतसम्यग्दृष्टि राशि से उक्त काल असंख्यातगुणा है ।
अस्तु ( देव व नारकी) दोनों ही स्थानों पर अर्थात् मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यगदृष्टि वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में, वैक्रियिकमिश्र काल की शलाकाओं के पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र होने का उपदेश है ।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है । २०३ ।
अस्तु-एक द्रव्यलिंगी साधु उपरिम वेयकों में दो विग्रह करके उत्पन्न हुआ और सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त के द्वारा पर्याप्तपने को प्राप्त हुआ। एक सम्यग्दृष्टि भावलिंगी संयत सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवों में दो विग्रह करके उत्पन्न हुआ और सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल से पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुआ।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का उत्कृष्टकाल अन्तमुहूर्त है । २०४ ।
अस्तु-कोई एक तिर्यंच अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं पृथ्वी के नारकियों में उत्पन्न हुआ और सबसे बड़े अन्तमुहूर्तकाल से पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुआ। अब असंयतसम्यग्दृष्टि की कालप्ररूपणा कहते हैं-कोई एक बद्धनरकायुष्क जीव सम्यक्त्व को प्राप्त होकर दर्शन मोहनीय का क्षपण करके और प्रथम पृथ्वी के नारकियों में उत्पन्न होकर सबसे बड़े अन्तर्मुहूर्तकाल में पर्याप्तियों की पूर्णता को प्राप्त हुआ। दोनों के जघन्यकालों से दोनों ही उत्कृष्टकाल संख्यातगुणे हैं ।
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