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प्रश्न है कि यह उत्कृष्टकाल किस जीव के होता है ?
समाधान – यह है कि तेंतीस सागरोपमकाल तक सुख से ललित-पालित हुए तथा दुःखों से रहित सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देव के विष्टा, मूत्र, आंतड़ी, पिस, खरिस ( कफ ) चर्वी, नासिकामल, लोहू, शुक्र और आम से व्याप्त, अतिदुर्गन्धित, कुत्सित रस, दुर्वर्ण और दुष्ट स्पर्श वाले चमार के कुण्ड के सदृश मनुष्य के गर्भ में उत्पन्न हुए जीव के औदारिकमिश्रकाययोग का उत्कृष्ट काल होता है, क्योंकि उसके विग्रहगति में तथा उसके पश्चात् भी मंदयोग होता है, इस प्रकार आचार्य-परम्परागत उपदेश है, मंदयोग से अल्पपुद्गलों को ग्रहण करने वाले जीव से औदारिकमिश्रकाययोग का काल दीर्घ होता है, यह अर्थ कहा गया है। अथवा, यहाँ पर चाहे योगकाल का बड़ा ही रहा आवे, और योग के वश से पुद्गल भी बहुत से आते रहें, तो भी उक्त प्रकार के जीव के अपर्याप्तकाल बड़ा ही होता है, क्योंकि विलास से दूषित जीव के शीघ्रतापूर्वक पर्याप्तियों को सम्पूर्ण करने में असामर्थ्य है।
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली नाना जीवों की अपेक्षा जघन्य से एक समय होते हैं। १९३ ।
प्रश्न है कि यह एक समय किसके होता है ?
समाधान यह है कि दंड समुद्घात से कपाट समुद्घात को प्राप्त होकर और वहाँ एक समय रहकर प्रतरसमुद्घात को प्राप्त हुए सात-आठ केवलियों के यह एक समय होता है। अथवा, रूचकसमुद्घात से कपाटसमुद्घात को प्राप्त होकर और एक समय रह करके दंड समुद्घात को प्राप्त होने वाले केवलियों के यह एक समय होता है ।
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवलीजिनों का उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । १९४।
शंका--ये संख्यात समय किसमें होते हैं ?
समाधान-कपाटसमुद्घात की आरोहण और अवतरणरूप क्रिया में लगे हुए दंडसमुद्घात और प्रतरसमुद्घातरूप पर्याय से परिणत संख्यात समयों की पंक्ति में स्थित, ऐसे संख्यात केवलियों के द्वारा अधिकृत अवस्था में उक्त संख्यात समय पाये जाते हैं।
एक जीव की अपेक्षा औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवलीजिनों का जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । १९५ ।
प्रश्न है कि यह एक समय कहाँ होता है ?
समाधान—आरोहण और अवतरणरूप क्रिया में व्यापृत, ऐसे दंडसमुद्घात और प्रतरसमुद्घात रूप पर्याय से क्रमशः परिणत हो उक्त समुद्घात केवली अवस्था से आये हुए कपाटसमुद्घातगत केवली को यह एक समय पाया जाता है ।
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