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योगागंणा के अनुवाद से पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवों में मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत और सयोगिकेवली नाना जीवों का अपेक्षा सर्वकाल रहते हैं ।। १६२ ॥
क्योंकि मनोयोग और वचनयोग के द्वारा होने वाले परिणमनकाल से उनके उपक्रमणकाल का अन्तर अल्प पाया जाता है ।
एक जीव की अपेक्षा उक्त जीवों का जघन्यकाल एक समय है ।
इस सूत्र के अर्थ निश्चय के समुत्पादनार्थ मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों को आश्रय करके एक समय की प्ररूपणा की जाती है— उनमें से पहले योगपरिवर्तन, गुणस्थान परिवर्तन मरण और व्यख्यात इन चारों के द्वारा मिथ्यात्व गुणस्थान का एक समय प्ररूपण किया जाता है। वह इस प्रकार है - सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत अथवा प्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती कोई एक जीव मनोयोग के साथ विद्यमान था । मनोयोग के काल में एक समय अवशिष्ट रहने पर वह मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ वहाँ पर एक समय मात्र मनोयोग के साथ मिथ्यात्व दिखाई दिया । द्वितीय समय में भी वह जीव मिथ्यादृष्टि ही रहा, किन्तु मनोयोग से वह वचनयोगी यह काययोगी हो गया । इस प्रकार योगपरिवर्तन के साथ पांच प्रकार से एक समय की प्ररूपणा की गई
प्रश्न है कि यहाँ पर समय में भेद कैसे हुआ ?
उत्तर - सासादनादि गुणस्थानों को पीछे करने से, अर्थात् उसमें पुनः वापस आने से समय भेद हो जाता है ।
अब गुणस्थान परिवर्तन के द्वारा एक समय की प्ररूपणा करते हैं, यथा कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव वचनयोग से अथवा काययोग से विद्यमान था । उसके वचनयोग अथवा काययोग का काल क्षीण होने पर मनोयोग आ गया और मनोयोग के साथ एक समय में मिथ्यात्व दृष्टिगोचर हुआ । पश्चात् द्वितीय समय में भी वह जीव यद्यपि मनोयोगी ही है, किन्तु सम्यग्मिथ्यात्व को, अथवा असंयम के साथ सम्यक्त्व को, अथवा संयमासंयम को, अथवा अप्रमत्तभाव के साथ संयम को प्राप्त हुआ । इस प्रकार से गुणस्थान के परिवर्तन के द्वारा चार प्रकार से एक समय की प्ररूपणा की गई।
समाधान यह है कि आगे प्राप्त होने
प्रश्न है कि यहाँ पर समय-भेद कैसे हुआ ? वाले गुणस्थान के भेद से समय में भेद हुआ ।
अस्तु पूर्वोक्त योग परिवर्तन संबंधी पांच समयों में साम्प्रतिकलब्ध गुणस्थान संबंधी चार समयों को प्रक्षिप्त करने पर नौ ( ९ ) भंग होते हैं । कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव वचनयोग से अथवा काययोग से विद्यमान था । पुनः योग संबंधीकाल के क्षय हो जाने पर उसके मनोयोग आगया । तब एक समय मनोयोग के साथ मिथ्यात्व दिखाई दिया और दूसरे समय में मरा। सो यदि वह तियंचों में या मनुष्यों में उत्पन्न हुआ तो कार्मणकाययोगी
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