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आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में प्रमत्तसंयतों ने लोक का असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है।
इस सूत्र की वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्र प्ररूपणा के समान है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना व कषाय समुद्घात परिणत आहारककाययोगी प्रमत्त संयत जीवों ने अतीतकाल में सामान्यलोकादि चार लोकों का असंख्यात वां भाग और मनुष्य क्षेत्र का संख्यातवां भाग स्पर्श किया है। आहारककाययोगियों में उपपाद और वैक्रियिकपद नहीं होते हैं। मारणान्तिकपदपरिणत आहारककाययोगी जीवों में सामान्यलोकादि चार लोकों का असंख्यातवां भाग और मनुष्य क्षेत्र से असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। स्वस्थान, वेदना और कषाय समुद्घात - इन पदों से परिणत आहारकमिश्रकाययोगी प्रमत्तसंयतों ने सामान्यलोकादि चार लोकों का असंख्यातवां भाग और मनुष्य क्षेत्र का संख्यातवां भाग स्पर्श किया है। .०८ कार्मण काययोगी को क्षेत्र-स्पर्शना
कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ।
-षट्० खण्ड ० १ । ४ । सू ९६ । पु । ४ पृष्ठ० २६९ टीका-सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसाय-उववादपरिणदेहि मिच्छादिट्ठीहि तिसु वि कालेसु जेण सव्वलोगो फोसिदो, तेण सुत्ते ओघमिदि वुत्तं । एत्थ विहारवदिसत्थाणवेउम्विय-मारणंतियपदाणि पत्थि। सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जविभागो।
-षट्० खण्ड० १।४ । सू ९७ । पु ४ । पृष्ठ० २७० टीका-एदस्स सुत्तस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगा।
एक्कारह चोद्दसभागा देसूणा।
-षट् खण्ड १ । ४ । सू ९८ । पु ४ । पृष्ठ० २७० टीका--एत्थ उववादवदिरित्तसेसपदाणि गत्थि, कम्मइयकायजोगविवक्खादो। उववादे वट्टमाणा सासण हेट्टा पंच, उवरि छ रज्जुओ फुसंति त्ति एक्कारह चोद्दसभागा फोसिदखेत्तं होदि। असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो।
-षट० खण्ड० १।४। सू ९९ । पु ४ । पृष्ठ० २७० टोका-एदस्स परवणा खेत्तभंगो, वट्टमाणकालपडिबद्धत्तादो।
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