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सव्वत्थोवा जीवा मणजोगी १, वइजोगी असंखेज्जगुणा २, अजोगी अणंतगुणा ३, कायजोगी अणं तगुणा ४, सजोगी विसेसाहिया ५।
-पण्ण ० प ३ । सू २५२ । पृष्ठ ० ९६ टीका - सर्वस्तोका मनोयोगिनः, संजिनः पर्याप्ता एवहि मनोयोगिनः ते च स्तोका इति, तेभ्यो वाग्योगिनोऽसंख्येयगुणाः द्वीन्द्रियादीनां वाग्योगिनां संज्ञिभ्योऽसंख्यातगुणत्वात् तेभ्योऽयोगिनोऽनन्तगुणाः, सिद्धानामनन्तत्वात, तेभ्यः काययोगिनोऽनन्तगुणाः वनस्पतीनामनन्तत्वात्, यद्यपि निगोदजीवानामनन्तानामेकं शरीरं तथापि तेनकेन शरीरेण सर्वेऽप्याहारादिग्रहणं कुर्वन्तीति सर्वेषामपि काययोगित्वान्नानन्तगुणत्वच्याघातः, तेभ्यः सामान्यतः सयोगिनो विशेषाधिकाः, द्वीन्द्रिवादीनामपि वाग्योगादीनां तत्र प्रक्षेपात् ।
इन सयोगी जीवों में मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी तथा अयोगी जीव कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! मनोयोगी सबसे अल्प हैं, क्योंकि संज्ञी पर्याप्त जीव ही मनोयोगी होते हैं और वे अल्प हैं। इनसे वचनयोगी असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि द्वीन्द्रियादि वाग्योगी संज्ञी जीवों से असंख्यातगुणा हैं। इनसे अयोगी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं। इनसे काययोगी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकाय अनन्त हैं। यद्यपि अनन्त निगोदों का शरीर एक होता है तथापि वे एक शरीर से आहारादि का ग्रहण करते हैं, अतः सभी के काययोगी होने के कारण अनन्त गुण का व्याघात नहीं होता है। इनसे सामान्यतः सयोगी विशेषाधिक हैं, क्योंकि द्वीन्द्रियादि वचनयोगियों का भी वहाँ पर प्रक्षेप किया गया है। :३३ एयस्स णं भंते ! पण्णरसविहस्स जहएणुक्कोसगरस कयरे कयरे. जाव विसेसाहिया वा?
सम्वत्थोवे कम्मगसरीरसस्स जहण्णए जोए २ ओरालियमीसगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ३ वेउव्वियमीसगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ४ ओरालियसरीरगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ५ वेउब्वियसरीरस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ६ कम्मगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ७ आहारगमीसस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे ८ तस्स चेव उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे ९-१० ओरालियमीसगस्स, वेउव्वियमीसगस्स य एएसि णं उक्कोसए जोए दोण्ह वि तुल्ले असंखेज्जगुणे ११ असच्चामोसमणजोगस्स जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे १२ आहारगसरीरस्स जहण्णए जोए असखेज्जगुणे १३-१९ तिविहस्स मणजोगस्स चउन्विहस्स वयजोगस्स-एएसि णं सत्तण्ह वि तुल्ले जहण्णए जोए असंखेज्जगुणे २० आहारगसरीरस्स उक्कोसए जोए असंखेज्जगुणे २१-३० ओरालियसरीरस्स,
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