________________
( ११४ ) •२३ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के जघन्य योग असंख्यातगुण
सण्णिपंचिदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टोका-सुगम ।
—षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६७ । पु० १० । पृष्ठ० ४०२ उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक का जघन्य योग असंख्यातगुणा है । २४ द्वीन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
बोई दियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टीका–सुगम।
-षट्० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६ । पु० १० । पृष्ठ० ४०२ उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । .२५ त्रीन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
तीइ दियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो । टीका—सुगमं।
-षट् खण्ड ४ । २ । ४ । सू १६९ । पु० १० । पृष्ठ · ४०२ उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । २६ चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
चरिदियपज्जत्तयस्स उक्सस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टीका-सुगम।
-षट० खण्ड ४ । २ । ४ । सू १७० । पु० १० । पृष्ठ० ४०२ उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है । •२७ असंज्ञो पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के उत्कृष्ट योग असंख्यातगुण
असण्णिपाँचदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो॥ टीका-सुगम।
-षट् खण्ड ४ । २।४ । सू १७१ । पु० १० । पृष्ठ० ४०२ उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org