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( ७३ , उववादं णत्थि।
षट० खं २ । ६ । सू ५८ । पु ७ । पृष्ठ० ३४३ टोका–ओरालियकायजोगेण सह एदस्स विराहादो। औदारिक काययोगी जीव स्वस्थान व समुद्घात की अपेक्षा सर्वलोक में रहते हैं ।
अस्तु स्वस्थान, वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात और मारणान्तिक समुद्घात की अपेक्षा उक्त जीव सर्वलोक में रहते हैं, क्योंकि सर्वत्र अवस्थान के अविरोधी औदारिक काययोगी जीवों के मारणान्तिक समुद्घात होता है। विहार पद की अपेक्षा तीन लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुण क्षेत्र में रहते हैं ? क्योंकि सराशि को छोड़कर उक्त जीवों का अन्यत्र विहार नहीं है । वैक्रियिक समुद्घात, तैजस समुद्घात और दण्ड समुद्घात को प्राप्त उक्त जीव चारों लोकों के असंख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं। विशेष इतना है कि तेजस समुद्घात को प्राप्त उस जीब मानुष क्षेत्र के संख्यातवें भाग में रहते हैं । कपाट समुद्घात, प्रतर समुद्घात, लोकपुरण समुद्घात और आहारक समुद्घात पद नहीं है, क्योंकि औदारिक काययोग के साथ उनका विरोध है ।
•०७ वैक्रिय काययोगी का समुद्घात क्षेत्र बेउव्वियकायजोगी सत्थाणेण समुग्धादेण केवडिखेत्ते?
-षट० खं २ । ६ सू ५९ । पु ७ । पृष्ठ० ३४३ टीका–सुगम।
लोगस्स असंखेज्जदिभागे।
-षट० खं० २। ६ । सू ६० । पु ७ पृष्ठ ० ३४३ टीका-एदस्सत्थो वुच्चदे-सत्थाणसत्थाण-विहारवविसत्थाण-वेयणकसाय-वेउब्वियपदेहि बेउम्बियकायजोगिणो तिण्हं लोगाणमसंखेज्जविभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाईज्जादो असंखेज्जगुणे। कुदो? पहाणीकयजोइसियरासित्तादो। मारणंतियसमुग्धादेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागे, गर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणे। एत्थ ओवट्टणं जाणिय कायव्वं ।
उववादो पत्थि।
-षट० खं २ । ६ सू ६१ । पु ७ । पृष्ठ० ३४३ । ४ टीका-बेउब्बियकायजोगेण उववादस्स विरोहादो।
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