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( ४९ ) इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय के संबंध मे जानना ।
अशुभयोगी तिर्यंचपंचेन्द्रिय अशुभयोगी तिर्यंचपंचेन्द्रिय के रूप में उत्पन्न होते हैं तथा शुभयोगी तिर्यंचपंचेन्द्रिय शुभयोगी तिर्यंचपंचेन्द्रिय में उत्पन्न होते हैं। कदाचित् जिस योग में उत्पन्न होते हैं, कदाचित् उसी योग में मरण को प्राप्त होते हैं। मरण के समम शुभ योग भी हो सकता है, अशुभयोग भी।
अशुभयोगी वाणव्यंतर देव अशुभयोगी वाणव्यंतर देव रूप में उत्पन्न होता है लेकिन शुभयोग का भी कथन करना चाहिए चूंकि उनमें तेजोलेश्या भी होती है।
अशुभयोगी ज्योतिषीदेव शुभयोगी ज्योतिषीदेव में तथा शुभयोगी वैमानिकदेव शुभयोगी वैभानिक देवरूप में उत्पन्न होते हैं। इन देवों का शुभयोग रूप में च्यवन होता है। देखें लेश्या कोश पृ० १५४ । •२८ सयोगी जीव और आरम्भ, परारंभ, उभयारम्भ व अनारम्भ ___जोवाणं भंते ! कि आयारंभा, परारंभा, तदुभयारंभा, अनारंभा ? गोयमा ! अत्थेगइया जीवा आयारंभा वि, परारंभा वि, तदुभयारंभावि। नो अणारंभा; अत्थेगइया जीवा नो आयारंभा, नो परारंभा नो तदुभयारंभा, अणारंभा। से केण?णं भंते। एवं वुच्चइ-अत्थेगइया जीवा आयारंभावि एवं पडिउच्चारेयव्वं ? गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णता, तंजहा-- संसारसमावण्णगा य असंसार समावनगा य। तत्थणं जे ते असंसारसमावन्नगा तेणं सिद्धा, सिद्धा णं नो आयारंभा जाव अणारंमा; तत्थणंजेते संसारसमावन्नगा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संजयाय असंजयाय ; तत्थ णं जे ते संजया ते दुविहा पण्णता, तंजहा पमत्तसंजया य अपमत्तसंजया य। तत्थणं जे ते अप्पमत्तसंजया ते णं नो आयारंभा, नो परारंभा जाव अणारंभा, तत्थ णं जे ते पमत्तसंजया ते सुह जोगं पड़च्च नो आयारंभा, नो परारंभा जाव अणारंभा, असुभं जोगं पडुच्च आयारंभावि जाव नो अमारंभा, तत्थणं जेते असंजया ते अविरतिं पडुच्च आयारंभावि जाव नो अणारंभा। से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ-अत्थेगइया जीवा जाव अणारंभा।xxx। मणुस्सा जहा जीवा।
-भग० श १ । उ १ । सू ४८/५१ जीव दो प्रकार के कहे गये हैं। वे इस प्रकार है--संसारसमापनक और असंसारसमापन्नक । जो संसारसमापन्नक है, वे दो प्रकार के कहे गये हैं—यथा संयत और असंवत। इनमें जो संयत है वे दो प्रकार के कहे गये हैं-यथा-प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत है। जो प्रमत्तसंयत है वे शुभयोग की अपेक्षा आरंभी, परारंभी और तदुभयारंभी नहीं है किन्तु
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