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.३२ औदारिकमिश्र काययोग का लक्षण .३३ वक्रिय काययोग का लक्षण .३४ वैक्रियमिश्र काययोग का लक्षण .३५ आहारक काययोग का लक्षण
आहारकमिश्र काययोग का लक्षण .३६ कामण काययोग का लक्षण
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•०५ परिभाषा के उपयोगी पाठ (आगम सम्मत ) .०५१.१ द्रव्ययोग की परिभाषा के उपयोगी पाठ (वर्ण-गंध-रस-स्पर्श)
-०२ पुदगल भी वर्ण-गंध-रस-स्पी है अतः द्रव्ययोग पुद्गल है। .०३ द्रव्ययोग पुद्गल है अतः पुद्गल के गुण भी द्रव्ययोग में है। .०४ योग और गुरु-लघ '.५ द्रव्ययोग गुरु-लघु-अगुरु-लघु है '०६ द्रव्ययोग अजीवोदय निष्पन्न भाव है क्योंकि जीव द्वारा ग्रहण
होने के बाद द्रव्य योग प्रायोगिक परिणमन होता है '०७ द्रव्ययोग जीव ग्राह्य है ..८ द्रव्ययोग चतुस्पर्शी भी है, अष्टस्पशी भी है ०६ द्रव्ययोग अनंतस्पी है १० द्रव्ययोग असंख्यात प्रदेशी क्षेत्र अवगाह करता है ११ द्रव्ययोग की अनंत वर्गणा होती है । १२ द्रव्ययोग के असंख्यात स्थान है
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'५२ भावयोग की परिभाषा के उपयोगी पाठ
१ भावयोग जीव परिणाम है २ भावयोग अवर्णी-अगंधी-अरधी अस्पी है '३ भावयोग अवर्णी-अगंधी-अरधी अस्पर्शी है तथा जीव
परिणाम है अतः जीव है •४ भावयोग अगुधलघु है
"५ भावयोग उदय निष्पन्न भाव है '६ विभिन्न आचार्यों द्वारा की गई परिभाषा '७ योग के भेद .१ दो भेद
द्रव्य और भाव प्रशस्त-अप्रशस्त
शुभ-अशुभ ०२ योग परिणाम के भेद •०३ योग के तीन भेद
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