________________
( 54 )
प्रतिसंलीनता के चार प्रकार में एक प्रकार योग प्रतिसंलीनता है । १-इन्द्रिय प्रतिसंलीनता २-कषाय ३-योग - ४-विविक्त शयनासन
मन, वचन व काय योग की स्थिरता को ध्यान कहते हैं । इस परिभाषा के आधार पर ध्यान के तीन प्रकार है
१-मानसिक, २-वाचिक व ३-कायिक
एकाग्र चिंता को ध्यान कहते हैं । इस परिभाषा के आधार पर ध्यान के चार प्रकार होते हैं
१-आतं, २-रौद्र, ३-धर्म और ४-शुक्ल
मिथ्यात्वी की तपस्या मोह कर्म के क्षयोपशम से होती है। यह काय शुभ योग है।
तपस्या-भाव-चार उदय को छोड़कर; आत्मा एक योग। दिगम्बर ग्रंथों में स्त्री के चार प्रकार का उल्लेख मिलता है
१ मनुष्यणी २ दिवांगना ३ पशुस्त्री ४ स्त्री-चित्र
इन चारों के साथ तीन करण व तीन योग से अब्रह्म का सेवन न करना । इस प्रकार (४४३४३) ३६ भेद शील के होते है।
महाव्रत में देव, मनुष्य व तिर्यच सम्बन्धी मैथून का तीन करण व तीन योग से प्रत्याख्यान करना होता है। अणुव्रत में जीवन पर्यंत देवता, देवांगना सम्बन्धी मैथून का दो करण व तीन योग से प्रत्याख्यान होता है परपुरुष-स्त्री-पुरुष और तिर्यच-तिर्यची सम्वन्धी मैथून का एक करण व एक योग से-शरीर से सेवन नहीं करूँगा।
__ केवल ब्रह्मचर्यका पालन भाव दो-क्षायोपशमिक व पारिणामिक । आत्मा-योग व देश चारित्र।
१ लोकोत्तर दान-भाष चार औदयिक छोड़कर व आत्मा एक योग। २ लौकिक दान-भाव दो-औदायिक व पारिणामिक व आत्मा एक योग।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org