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( ३१३ )
तरीका-सुगम।
जहण्णेण अंतोमुहुतं ।
-षट खं• २।३ । सू ६० । पृ ७ । पृ० २०५ सौका-कुदो १ मणजोगादो कायजोगं पचिजोगं वा गंतूण सम्पजहण्णमंतोमुत्तमच्छिय पुणो मणजोगमागदस्स जहण्णेणंतोमुटुत्तरुषलंभादो । सेसचत्तारिमणजोगीणं पंचवविजोगीणं च एवं चेव अंतरं परूवेयध्वं, भेदाभाषादो। पत्थ एगसमओ किण्ण ब्भदे ? ण, वाघादिदे मुदे वा मण-पचिजोगाणमणंतरसमए मणुषलंभादो। टक्कस्सेण अणंतकालमसंखेजपोग्गलपरिय।
-षट खं० २।३ । सू ६१ । पु ७ | पृ. २०५। ६ रीका-कुदो ? मणोगादो पचिजोगं गंतूण तत्थ सव्वुकस्लमद्धमच्छिय पुणो कायजोगं गंतूण तत्थ वि सव्वचिरं कालं गमिय एइंदिए सुप्पनिक भाषलियाए असंखेजदिभागमेत्तपोग्गलपरियडणाणि परियहिय पुणो मणजोगं मदस्स तदुषलंभादो। सेसचत्तारिमणजोगीणं पंचवचिजोगीणं च एवं चेष अंतरं परवेदव्वं, बिसेसाभावादो।
योगमार्गणा के अनुसार पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों का अन्तरकाल जघन्यतः अन्तर्महूर्त है ; क्योंकि मनोयोग से काययोग में अथवा वचनयोग में जाकर सबसे कम अन्तर्महूतं मात्र रहकर पुनः मनोयोग में आनेवाले जीव के अन्तर्महूर्त रूप जघन्य अन्तर पाया जाता है। शेष चार मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों का भी जघन्व अन्तरकाल इसी प्रकार समझना चाहिए, क्योंकि इस अपेक्षा से कोई भेद नहीं है। इन पाँच मनोयोगी तथा पाँच वचनयोगी जीवों का एक योग से दूसरे योग में जाकर पुनः उसी योग में लौटने पर एक समय रूप अन्तर न होने का कारण यह है कि जब एक मनोयोग या वचनयोग का विघात हो जाता है या विवक्षित योगयुक्त जीव का मरण हो जाता है, तब केवल एक समय के अन्तर से पुनः अनन्तर समय में उसी मनोयोग या वचनयोग की प्राप्ति नहीं हो सकती है।
पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवों का उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुद्गल परिवर्तन रूप अनन्तकाल तक होता है। क्योंकि मनोयोग से वचनयोग में जाकर वहाँ अधिक काल तक रहकर पुनः काययोग में जाकर और वहाँ भी सबसे अधिक काल व्यतीत करके एकेन्द्रियों में उत्पन्न होकर आवली के असंख्यातवें भाग रूप पदमल परिवर्तन परिभ्रमण कर पुनः मनोयोग में आये हुए जीव के उक्त रूप अन्तरकाल प्राप्त होता है।
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