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( ३०२ )
त्रीन्द्रिय के जीव मनोयोगी नहीं होते हैं, वचनयोगी व काययोगी होते हैं ।
.२६ चतुरिन्द्रिय में
( चउरिदिया) सेसं जहा तेइ दियाणं
चतुरिन्द्रिय के जीव काययोगी व वचनयोगी होते हैं ।
.२७ नारकी में
( रयणप्पभा पुढचिनेरइया जाब अहेसत्तमपुढवि नेरइया ) तिविजोगे I - जीवा प्रति १ । २ । सू ६२, ६६
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रत्नप्रभा पृथ्वी से तमतमाप्रभा पृथ्वी के जीवों में तीनों योग होते हैं --मनोयोग वचनयोग व काययोग |
- जीवा० प्रति १ । २ । सू ६०
.२८ संमुच्छिम तिर्यच पंचेन्द्रिय में
-१ जलचर संमुच्छिम तिर्य व पंचेन्द्रिय में
संमुच्छिम पंचेदियतिरिषखजोणिया XXX जलयरा दुबिहे जोगे । - जीवा० प्रति १ । २ । सू ६८, १०१
जलचर संमि तिर्यंच पंचेन्द्रिय में दो योग होते हैं - काययोग व वचनयोग ।
.२ स्थलचर संमुच्छिम तिर्य व पंचेन्द्रिय में
(क) वउप्पय थलयर संमुच्छिम पंचेन्दिय-तिरिषख जोणिया × × × जहा जलयराणं । - जीवा० प्रति १ । २ | सू १०२, ११२
चतुष्पाद स्थलचर संमुच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्रिय में दो योग होते हैं— काययोग व वचनवोग |
(ख) उरपरिसर्प स्थलचर संमुच्छिम में
उरयपरिसप्पसंमुच्छिमा xxx जहा जलयराणं ।
तथा वचनयोग |
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उरपरिसर्पस्थलसचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय में दो योग होते हैं यथा - काययोग
- जीवा • प्रति १ । २ । सू ११२
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