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( २९६ ) बेडिय, भंतिय (भंडिय) दर्भ, कोतिय, दर्भकुशपर्वक, पोइदेल ( पोइदइल ) अर्जुन (अंजन) आषाढक, रोहितक, समु, तवखीर, भुस, एरण्ड, कुरुकंद, करकद, सुंठ, विभंग मधुरयण ( मधुवयण ), थुरग, शिल्पिक, सकूलितृण-इनके मूल यावत् बीज में काययोग होता है।
.६ अभूरूह आदि वनस्पति-काय में
अह भंते ! अब्भरुह-वायण-हरितग-तंदु-लेजग-तण-पन्थुल-पोरग मजारपाई-बिल्ली पालक-वगपिप्पलिय-दग्वि-सोत्थिय-सायमंडुकि - मूलग - सरिसवअंबित साग जियंतगाणं x x ४ । एवं पत्थ वि दस उद्देसगा जहेव वंसघग्गो।
- भग° श २१ । व ७
अभूरुह, वायण, हरितक, तांदलजी, तृण, वत्थुल, पोरक, मार्जादिक, विल्लि (चिल्ली) पालक, दगपिप्पली, दरिब ( दर्वी ) स्वस्तिक, शाकमंडकी, मुलक, सरसव, अंबिलशांक, जियतंग-इनके मूल यावत बीज काययोगी होते हैं ।
मुखसी आदि वनस्पति-काय में
. अहमते ! तुलसी-कण्ह-दराल-फणेजा-अजा-चूतणा-चोरा-जीरा-दमणामुरुया-इंदीवर-सयपुप्फाण xxx | एत्थवि दस उद्देसगा निरवसेसं जहा ब्रसाणं।
-भग० श २१ । व८
तसली, कृष्ण, दराल, फणेज्जा, अज्जा, चूतणा, चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इंदीबर, शतपुष्प-इनके मूल यावत बीज काययोगी होते हैं।
.८ ताल-तमाल आदि बनस्पति काय में .... अह भंते! ताल-तमाल-तक्कलि-तेतलि-साल-सरला-सारगल्लाणं जाग केयतिकदलो-कंदाल-चम्मरुषख-गुंतरुक्ख - हिंगुरुक्ख - लवंगरुक्ख - पूयफलखजूरि-नाल एदीणं-मूले-कन्दे-खंधेतयाए सालेय एएसु पंएसु उद्देसगेसु देखो न उपवजा। xxx | पवाले पत्ते पुष्फे फले वीए xxx।
-भग० श २२ । व १
ताड, तमाल, तक्कलि-तेतलि-साल-देवदार, सारागाल यावत् केतकी, केला, कंदली, बमवृक्ष, गुंदवृक्ष, हिंगुवृक्ष, लवगवृक्ष, सुपारीवृक्ष, खजूर, नारिकेल-इनके मुल, कंद (स्कंध), त्वचा (छाल ) शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज काययोगी होते है।
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