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अपज लिए अणाइए वा सपज्जवसिए । अजोगी सादिए वा अपज्जवलिए × × × । ) - जीवा० प्रति
सयोगी के दो भेद है - अनादि अपर्यवसित, अनादि सपर्यवसित ।
अयोगी सादि पर्यवसित है ।
नोट - अभव्य सयोगी अनादि अपर्यवसित है । भव्य सयोगी अनादि सपर्यवसित है ।
• ४ सयोगी और अणाहारिक केवली
भवत्य के बलिभणाहारए दुविहे पन्नत्ते, केवलिअणाहारए य अजोगिभषत्थ केवलिअणाहारएय ।
भवस्थ केवली अणाहारिक के दो प्रकार है - यथा सयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक ( तीन समय की स्थिति है तथा केवल कार्मण काययोग होता है ) तथा अयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक ।
सयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक की स्थिति
भयोगी भवस्थ केवली अणाहारिक की स्थिति
जोगि भवत्थव जिभणाहारएणं भंते ! X xx कालओ के चिरं होइ ? अजहण्णमणुक्कोसेणं तिण्णि समया ।
की है।
अंतोमुहूत्तं ।
तंजहा - सजोगिभवत्थ
- जीवा० प्रति ६
अजोगि भवत्य के वलिभणाहारए जहण्णेणं अंतोमुहूत्तं
अणाहारिक सयोगी भवस्थ केवली की स्थिति जघन्य तथा उत्कृष्ट तीन समय
अणाहारिक अयोगी भवस्थ केवली की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट भी
उक्को सेणचि
- जीवा० प्रति ६ ४७,४८
.५ लेश्या और योग का तादात्म्य
( लेश्या परिणाम ) अयंच योग परिणामे सतिभवति, यस्यान्निरुद्धयोगस्य लेश्या परिणामोऽपैति, यतः समुच्छिन्नक्रियं ध्यानमलेश्यस्य भवति । ति लेश्या परिणामानन्तरं योग परिणाम उक्तः । - ठाण० स्थ] ६ । सू १८ । टीका
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योगपरिणाम के होने पर ही लेश्यापरिणाम होता है। योगनिरोध के समव लेश्यापरिणाम नहीं होता है क्योंकि समुच्छिन्न-क्रिय-ध्यान में लेश्या नहीं होती। लेश्या परिणाम के बाद योगपरिणाम होता है ।
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