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( २४५ )
"१६१०१८ ईशान कल्पोपपन्म वैमानिक देवों से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने
योग्य जीवों में (सोहम्मे णं भंते! जे भविए पुढविषकाइयएसु उपवज्जित्तए xxx एवं जहा जोइसिय गमगोxxx । ईसाणदेवे णं भंते ! जे भविएxxx एवं ईसाणदेवेण वि णव गमगा भाणियधा xxx) उनमें तीनों योम होते हैं।
-भग० श २४ । उ १२। सू५५
६.११ अप्कायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
स्व-पर यौनि से अप्कायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( आउकाइया णं भंते! कओहिंतो उववज्जति ? एवं जहेष पुढविष्काइयउद्देसए जाधxxx) उनके सम्बन्ध में पृथ्वीकायिक के विषय में कहा-वैसा कहना ?
-भग• श २४ । उ १ । सू १
१६१२ अग्निकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( तेउक्काइया णं भंते !
कओहितो उपधज्जति । एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो उद्देसो भाणियब्यो। नवरंxxx देवेहितो ण उववज्जति, सेसं तं चेव) उनके विषय में कायकी अपेक्षा पृथ्वीकायिक जीवों के उद्देशक में जैसा कहा-वैसा कहना । देव उत्पन्न नहीं होते है ।
-भग० श २४ । उ १४ । सू १
'१६१३ स्व-पर योनि से वायुकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में (वाउपकाइया
णं भंते ! कओहितो उपधज्जति एवं जहेव तेउपकाइयउद्देसमो तहेष xxx)
-भग० श २४ । उ १५ । सू' उनके सम्बन्ध में योग की अपेक्षा अग्निकायिक उद्देशक में जैसा कहा-वैसा ही कहना।
"१६१४ चनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में
गमक १६-स्व पर योनि से वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में ( वणस्सइकाइया णं भंते !x x x एवं पुढविषकाइयसरिसो उद्देसो) उनके सम्बन्ध में योग की अपेक्षा पृथ्वीकायिक उद्देशक में जैसा कहा वैसा कहना ।
-भग० श २४ । उ १६ । सू १
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