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( २४३ ) ९६१०.६ द्वीन्द्रिय से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में (बेई दिए णं
भंते। जे भविए पुढधिक्काइएसु उववजित्तए x x x तेणं भंते ! xxx (णो मणजोगी ववजोगी घि, कायजोगी yि xxx1) णो मनजोगी णो वयजोगी कायजोगी xxx उनमें मनोयोगीxxx नहीं होते वचनयोगी है काययोगी होते है । चौथे-पाँचवें छ? तीन गमकों में काययोगी होते हैं वचनयोगी नहीं होते है।
-भग० श २४ । उ १२ । सू २०-२५ नोट-अपर्याप्त द्वीन्द्रिय में काययोग होता है, वचनयोग-मनोयोगी नहीं होते है। यहाँ
जघन्य स्थिति है।
९६१०७ त्रीन्द्रिय से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में (जइ तेई.
दिएहितो उववज्जंति० एवं चेव नव गमगा भाणियब्धा xxx ) उनमें काययोगी व वचनयोगी होते हैं । परन्तु मध्यम तीन गमकों में वचनयोगी मनोयोगी नहीं होते हैं काययोगी होते हैं।
-भग० श २४ । उ १२ । सू २६ •९६१०.८ चतुरिन्द्रिय से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में (जइ
चडरिदिएहितो उपवजंति० एवं चेव चउरिदियाणं वि नव गमगा भाणियव्या xxx ) उनमें वचनयोगी व काययोगी होते हैं। मध्यम तीन गमकों में काययोगी होते हैं, वचनयोगी मनोयोगी नहीं होते हैं।
-भग० श २४ । उ १२ । सू २७ ९६.१०.९ असंशी पंचेन्द्रिय तियं च योनि से पृथ्बीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य
जीवों में ( असन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भषिए पुढिषिक्काइएसु उषवजित्तएxxx तेणं भंते ! जीवा० एवं जहेव बेइं दियाए
ओहियगमए लद्धी तहेव xxx सेसं तं चेव) उनमें छहों में बचनयोगी-काय योगी होते है। चौथे-पाँचवें-छठे गमक में काययोगी होते हैं वचनयोगी मनोयोगी नहीं होते हैं।
-भग० श २४ । उ १२ । सू । ३. ९६.१०.१० संख्यात वर्ष की आयु वाले संशी पंचेन्द्रिय तिथंच योनि से पृथ्वीकायिक
जीवों में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( जइ संखेज्जवासाउय सन्निपंचिदियतिरिक्ख-जोणिए०) x xx तेणं भंते ! जीया xxx एवं जहा रयणप्पभाए उववजमाणस्स सन्निस्स तहेव इहषि xxx1) उनमें तीनों योग होते हैं। लेकिन पृथ्वीकायिक जीवों में काययोग होता है। मध्यम तीन गमकों में काययोगी होते हैं, वचनयोगी-मनोयोगी नहीं होते है।
-भग श २४ । उ १२ । सू३३-३४
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