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( २३६ ) कालहिईय पज्जत्तसंखेज्जवासउय० जाव तिरिक्ख जोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढधिनेरइएसु उववज्जित्तएxxx तेणं भंते ! जीवा अषसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो एएसि चेव पढमगमओ णेवग्यो) उनमें तीनों योग होते हैं।
-भग० श २४ । उ १ । सू६६, ६६
९६१३ पर्याप्त संख्यात वर्ष का आयु वाले संक्षी मनुष्य से रत्नप्रभा पृथ्वी के
नारकी में उत्पन्न होने योग्य जीवों में :
गयक १-९-पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्य से रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से र्ण भंते ! जे भविए रयणप्पभाए पुढवीए नेरहएसु उवधज्जित्तए x x x तेणं भंते ! एवं सेसं जहा सन्निचिदियतिरिक्खजोणियाणंजाव भवाएसोत्ति गमक १ सोचेव जहन्नकालढिईएसु उववन्नो-एसचेववत्तव्यया। गमक २
सोचेष उक्कोसकालटिईएसु उघवन्नो-एसचेवपत्तव्वया । गमक ३ सोचेव अप्पणा जहन्नकालढिईओ जाओ एसवत्तब्धया। गमक ४
सोचेष जहन्नकाल टिइएसु उपधन्नो-एस चेष वत्तव्वया चउत्थगमग सरिसा नेयव्वा । गमक ५ सोचेव उक्कोसकालटिइओ उपवन्नो एसचेव गमगो६ सोचेव अप्पणा उक्कोसकालढिइओजाओ, सोचेव पढमगमओ णेयव्यो । गमक सोचेव जहन्नकालटिईएसु उववन्नो सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्यया गमक ८ सोचेष उक्कोसकालढिईएसु उवधन्नो, सच्चेष सत्तमगमग पत्तव्धया गमक ९) उनमें नव ही गमको में तीनों योग होते हैं। -भग• श २४ । उ १ । सू६१ से १६०
गमक ९-उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संशी पंचेन्द्रिय योनि से उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है (उक्कोसकालट्टिईयपज्जत्त० जाव-तिरिक्खजोणिए णं भंते जे भषिए उक्कोसकालढिईय० जाव उववज्जित्तएxxx तेणं भंते ! जीषा० सोचेष सत्तमगमओ निरवसेओ भाणियन्वो। उनमें मनोयोगी नहीं होते हैं, वचन योगी काययोगी होते है।
-भग• श २४ । उ १ । सू ७२-७३ गमक ९-उत्कृष्ट स्थिति वाले पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले संशी तिर्यच पंचेन्द्रिय योनि से जघन्य स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकी में उत्पन्न होने योग्य जो जीव है ( सोचेव जहन्नकालटिईएसु उवषन्नोxxx तेणं भंते ! जीषा सोचेष
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