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योग होते है। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में दो योग होते है। पदमलेशी सम्यगमिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं। पद्मलेशी असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तेरह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते है। पद्मलेशी संयतासंयत में नौ योग होते हैं। पदमलेशी प्रमत्त संयत में ग्यारह योग होते हैं। पदमलेशी अप्रमत्तसंयत में नौ योग होते है। .८४ शुक्ललेशी में
सुक्कलेस्साणं भण्णमाणे XXX पण्णारह जोग Xxx। तेसिं चेष पज्जत्ताणं XXX एगारह जोग Xxx। तेसिं चेच अपज्जत्ताणं xxx चत्तारि जोग XXX । शुक्कलेस्सा मिच्छाइट्ठीणं xxx ओरालियमिस्सकायजोगेण पिणा बारह जोग xxx । तेसिं चेष पज्जत्ताणं x x x दस जोग xxx । तेसिं चेष अपज्जत्ताणं x x x वे जोग xxx। सुक्कलेस्सा-सासणसम्माइट्ठीणं xxx बारह जोग, ओरालियमिस्सकायजोगो णत्थि। कारणं, देव-मिच्छाइद्विसासणसम्माइट्ठीणं तिरिक्ख-मणुस्सेसुप्पज्जमाणाणं अमुणिय-परमत्थाणं तिव्वलोहाणं संकिलेसेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ फिटिऊण किण्ह-णील-काउलेस्साणं एगदमा भवदि। सम्माइट्ठीणं पुण मणुस्सेसुचेष उप्पज्जमाणाणं मंदलोहाणं समुणिदपरमत्थाणं अरहंतभयवंतम्हि छिण्ण-जाइ-जरा-मरणम्हि दिण्णबुद्धोणं तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ चिरंतणाओ जाव अंतोमुहुत्तं ताप ण णस्तंति । x x x । तेसिं चेव पज्जत्ताणं x x x दस जोग xxx तेर्सि वेव अपजत्ताणं xxx दो जोग x x x | सुक्कसेस्सा-सम्मामिच्छाइट्ठीणं xxx दस जोग xxx । सुक्कलेस्सा-असंजदसम्माइट्ठीणंxxx तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पजत्ताणं x x x दस जोग xxx । तेसिं चेव अपजताणं x x x तिण्णि जोग xxx। सुक्कलेस्सा-संजदासंजदाणं xxx णव जोग xxx| सुक्कलेस्सा-पमत्तसंजदाणं xxx एगारह जोग xxxi सुक्कलेस्सा-अप्पमत्तसंजदाणं xxx णव जोग xxx। अपुव्वयरणप्पडुडि जाप जाप सजोगिकेवलि त्ति ओघभंगो; तेसु शुक्लेस्सा-वदिरित्तण्णलेस्साभावादो ।
-षट् ० खं• १, १ । पु० २ । पृ. ७६०-८०१ शुक्ललेशी में पन्द्रह योग होते हैं । इनके पर्याप्त में ग्यारह योग, अपर्याप्त में चार योग होते हैं। शुक्ललेशी मिथ्यादृष्टि में औदारिकमिश्र काययोग के बिना बारह योग होते है। इनके पर्याप्त में दस योग व अपर्याप्त में दो योग-वै क्रियमिश्र काययोग-कामण काययोग होते हैं। शुक्ललेशी सास्वादान सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बारह योग ( औदारिकमिश्र काययोग के बिना ) होते हैं । देव मिथ्यादृष्टि सास्वादान सम्यग्दृष्टि जब तियं च पंचेन्द्रिय
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