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( २१३ ) वेदी सम्यग मिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं । स्त्री वेदी असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में दस योग होते हैं । स्त्री वेदी संयतासंयत गुणस्थान में नव योग, स्त्री वेदी प्रमत्तसंयत में नौ योग ( चार मन के, ४ वचन के, १ औदारिक काययोग = ६ योग ) आहारक-आहारिक मिश्रयोग स्त्री वेदी प्रमत्तसंयत में नहीं होता है। स्त्री वेदी अप्रमत्तसंयत में, अपूर्व करण में अनिवृत्ति वादर गुणस्थान में नौ योग होते है।
.५७ पुरुषवेदी में
पुरिसवेदाणं भण्णमाणे x x x पण्णारह जोग x x x । तेसिं चेष पज्जत्ताणं xxx एगारह जोग x xx । तेसिं चेव अपज्जत्ताणं xxx चत्तारि जोग xxx। पुरिसवेद-मिच्छाइट्ठीणं xxx तेरह जोग xxxi तेसिं चेव पज्जत्ताणं xxx दस जोग xxx। तेसिं चेव अपज्जत्ताणं xxx तिण्णि जोग x x x | पुरिसवेद-सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव पढम-अणियट्टि त्ति ताप मूलोघ-भंगो । xxx
-षट० खं १, १ । पु २ । पृ० ६८४-८८ ___ पुरुष वेद में पन्द्रह योग होते हैं। इनके पर्याप्त में ग्यारह योग होते हैं तथा अपर्याप्त में चार योग होते हैं (औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र, आहारिकमिश्र कार्मणकाययोग) पुरुष वेद मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में तेरह योग। इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते पुरुषवेद सास्वादान सम्यग्दृष्टि में तेरह योग, इनके पर्याप्त में दस योग, अपर्याप्त में तीन योग होते हैं-( वे क्रियमिश्रकाय, औदारिकप्रिश्र काययोग तथा कार्मणकाययोग ) पुरुष वेद सम्यगमिथ्यादृष्टि में दस योग होते हैं। इस गुणस्थान में अपर्याप्त अवस्था नहीं बनती है । पुरुष वेदी असंयत सम्यग्दृष्टि में दस योग । संयतासंयत में नौ योग होते हैं। प्रमत्तसंयत में ग्यारह योग होते हैं । अप्रमत्तसंयत, अपूर्व करण, प्रथम अनिवृत्ति बादर गुणस्थान में नौ योग होते है।
.५८ नपुंसकवेदी में
__णवंसयवेदाणं भण्णमाणे xxx तेरह जोग xxx। तेसिं चेव पज. ताणं xxx दस जोग Xxx। तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx तिण्णि जोग xxx। णवंसयवेद मिच्छाइट्ठीणं xxx तेरह जोग xxx। तेसि सेव पजत्ताणं xxx दस जोग XXX| तेसिं चेष अपजत्ताणं xxx तिणि जोग xxx। णवंसयवेद-सासणसम्माइट्ठीणं XXX बारह जोग, सासणगुणेण जीवा णिरयगदीए ण उप्पज्जति तेण वेउब्धिय मिस्सकायजोगो णस्थि ।x_xxi तेसिं चेव पजत्ताणं xxx दस जोग। तेसिं चेव अपजत्ताणं xxx वे जोग xxx णवंसयवेद-सम्मामिच्छाइट्ठीणं xxx दस जोग xxx | णवंसयवेदअसंजदसम्माइट्ठीणं xxx बारह जोग, ओरालियमिस्लकायजोगो णस्थि ।
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