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निवृत्तिपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में बादर पृथ्वीकाय की तरह औधिक, अपर्याप्त और पर्याप्त-तीन आलापक होते हैं । यथा
औधिक निवृत्ति बादर पृथ्वीकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं।
अपर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं।
पर्याप्त निवृत्तिपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय में एक औदारिक काययोग होता है । .०१३ अपकाय में
आउकाइयाणं पुढषि-भंगो। -षट • खं० १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६०६ अप्काय के जीवों में पृथ्वीकायिक जीवों की तरह तीन योग होते हैं-यथा
(१) औदारिक काययोग, (२) औदारिकमिश्र काययोग और (३) कार्मण काययोग .०१३.०१ अपर्याप्त अप्काय में
आउकाइयाणं पुढवि-भंगो। --षट् • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ॰ ६०६
अपर्याप्त अप्काय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय- दो योग होते हैं । .०१३.०२ पर्याप्त अपकाय में
आउकाइयाणं पुढवि-भंगो। -षट • खं १, १ । टीका । पु २ पृ० ६.६
पर्याप्त अप्काय में एक औदारिक काययोग होता है। .०३.०३ सूक्ष्म अपकाय में मुहुमआउकाइयाणं सुहुमपुढविकाइय-भंगो।
- षट० खं. १, १ । टीका । पु २ पृ० ६१० सूक्ष्म अप्काय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कामणकाय--तीय योग होते हैं । ( देखे पाठ .१२.०३) .०१३०३.०१ अपर्याप्त सूक्ष्म अपकाय में सुहुम आउकाइयाणं सुहमपुढविकाइय-भंगो। (देखो पाठ .०१२.०३.०१)
-षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० अपर्याप्त सूक्ष्म अप्काय में औदारिकमिश्र और कामणकाय-दो योग होते है ।
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