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.०५.०१ तृतीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में
देसो पाठ द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकी .०४.०१ । - षट् ० खं० १, १ । टीका । पृ २ | पृ० ४६५-६७
तृतीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में एक ही मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है तथा यमिश्र और कार्मणकाय - दो योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि तृतीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त दो योग होते हैं ।
.०५.०२ तृतीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में
देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकी . ०४.०२ । - षट् • खं० १, १ । टीका । पु २ | पृ० ४६५-६७
तृतीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में आदि के चार गुणस्थान होते हैं तथा चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय - नौ योग होते हैं। गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि तृतीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त नौ योग । सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयत सम्यग्दृष्टि तृतीय पृथ्वी के पर्याप्त नारकी ही होते हैं और इनमें - उपर्युक्त नौ योग होते हैं ।
.०६ चतुर्थ पृथ्वी के औधिक नारकियों में
देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के नारकी .०४ ।
चतुर्य पृथ्वी के औधिक नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वैक्रिय, वैक्रियमिश्र और कार्मणकाय -- ग्यारह योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त ग्यारह योग होते हैं । सासादन सम्यग्दृष्टि चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के और वैक्रियकाय-नौ योग । सम्यग्मिथ्यादृष्टि चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग । असंयत सम्यग्दृष्टि चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में उपर्युक्त नौ योग होते हैं ।
चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में मन, वचन, और काय - तीन योग होते हैं ।
चतुर्थ पृथ्वी के नारकियों में चार मन के, चार वचन के, वे क्रियशरीर, वे क्रियमिश्र - शरीर और कार्मणशरीरकाय - ग्यारह प्रकृष्ट योग या प्रयोग होते हैं ।
.०६.०१ चतुर्थ पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में
देखो पाठ द्वितीय पृथ्वी के अपर्याप्त नारकी . ०४.०१ ।
चतुर्थं पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान होता है तथा क्रियमिश्र और कार्मणकाय - - दो योग होते हैं । गुणस्थान की अपेक्षा से मिथ्यादृष्टि चतुर्थं पृथ्वी के अपर्याप्त नारकियों में उपर्युक्त दो योग होते हैं ।
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