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( १६६ ) तसि ( मिच्छाइट्ठीणं ओघालावे ) चेष अपजत्तोघे भण्णमाणे अस्थि xxx तिणि जोग xxx । तेर्सि ( सासणसम्माइठ्ठीणं) चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि x x x तिण्णि जोग xxx। तेसिं (असंजदसम्माइट्ठीणं ) वेव अपजत्ताणमोघपरूवणे भण्णमाणे अस्थि x x x तिण्णि जोग x x x |
__ षट • खं १, १ । टीका पु २ | पृ. ४२१-३० अपर्याप्ति पर्याय से युक्त औधिक अपर्याप्त जीवों में मिथ्या दृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि, प्रमत्तसंयत और सयोगिकेवली ये पाँच गुणस्थान होते हैं। अतः इनमें औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र, आहारकमिश्र और कार्मणकाय-ये चार योग होते हैं ।
___ औधिक मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त, सासादन सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त तथा असंयत सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त जीवों में तीन योग होते हैं ।
सामान्य अपर्याप्त जीवोंमें तीन ही गुणस्थान होते हैं और इन गुणस्थानवी अपर्याप्त जीवों में तीन ही योग पाये जाते हैं। प्रमतसंयत में विशेष अपेक्षा से अपर्याप्त अवस्था मानी गयी है और उस अवस्था में उनमें चार योग होते हैं। सयोगी केवली में समुद्रघात की विशेष अवस्था में अपर्याप्तता मानी जाती है और उनमें दो योग होते हैं । .०१.०२ औधिक पर्याप्त जीवों में
पजत-विसिह ओघे भण्णमाणे अत्थि चोद्दस गुणट्ठाणाणि, अदीदगुणट्ठाणं णस्थि; पजनेसु तस्स संभवाभावादो । x x x ओरालिय-वेउब्धिय-आहारमिस्स-कम्मइयकायजोगेहि विणा एकारह जोग, अजोगो घि अस्थि xxx। तेसिं चेव मिच्छाइट्ठीणं पजत्तोधे भण्णमाणे अस्थि xxx दसजोग x x x | तेसिं चेव सासणसम्माइट्ठीणं पजत्ताणमोघालावे भण्णमाणे अस्थि xxx दसजोग x x x | असंजदसम्माइट्ठीणं पजत्ताणमोघालावे भण्णमाणे अस्थि xxx दसजोग xxx
पमत्तसंजदाणमोघालावे भण्णमाणे अत्यि x x x एक्कारह जोग xxx। (अन्य गुण स्थानों के आलापक ओघ के समान ही होते हैं)
-षट्० खं १, १ । टीका। पु २ | पृ० ४२०-४३२ पर्याप्ति-पर्याय विशिष्ट औधिक पर्याप्त जीवों में चौदह गुणस्थान होते हैं, किन्तु अतीत गुणस्थान नहीं होता है, क्योंकि पर्याप्त जीवों में अतीत गुणस्थान की संभावना नहीं है । औदारिकमिश्र, वैक्रिय मिश्र, आहारकमिश्र और कार्मणकाय योग के बिना ग्यारह योग होते हैं तथा अयोगावस्था भी होती है । गुणस्थान की अपेक्षा से औधिक पर्याप्त मिथ्यादृष्टि जीवों में दस योग होते हैं। इनके सासादन सम्यग्दष्टि जीवों में दस योग। इनके असंयत सम्यग्दृष्टि जीवों में दस योग । प्रमत्तसंयत जीवों में ग्यारह योग होते हैं ।
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