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________________ ( १५० ) शेष सभी जीवों के पर्याप्त के विषय में कहना चाहिए, यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौ - यातिक कल्पातीत वैयानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय मिश्र कायप्रयोग परिणत नहीं होता, किन्तु अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपातिक कल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय मिश्र कायप्रयोग परिणत होता है । विवेचन - वैक्रिय मिश्र काययोग - वैक्रिय और कार्मण द्वारा अथवा वैक्रिय और औदाfरक इन दो शरीरों के द्वारा होनेवाले वीर्य शक्ति के व्यापार को 'वैक्रिय मिश्रकाययोग कहते हैं । वैक्रिय और कार्मण सम्बन्धी वैक्रिय मिश्र काययोग देवों और नारकों में उत्पत्ति के दूसरे समय से लेकर जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण न हो तब तक रहता है । वैक्रिय और औदारिक, इन दो शरीरों सम्बन्धी वैक्रिय मिश्र काययोग, मनुष्य और तिर्यंचों में तभी पाया जाता है जबकि वे लब्धि के बल से वैक्रिय शरीर का आरंभ करते हैं । वैक्रिय शरीर का त्याग करने में वैकिय मिश्र नहीं होता, किन्तु औदारिक मिश्र होता है । '०७ आहारक काययोगी और एक द्रव्य परिणाम जई आहारणसरीरकायप्पयोगपरिणए किं मणुस्साहारगसरीरकायप्पयोगपरिणए, अमणुसाहारण जाव परिणए १ एवं जहा "ओगाहणसंठाणे" जाब इड्ढिपत्तपमत्त संजयसम्म दिट्ठिपजत्त संखेजवा साउय जाब परिणए । -भग० श द उ १ । प्र ४७ यदि एक द्रव्य आहारक शरीर कायप्रयोग परिणत होता है तो वह मनुष्य आहारक शरीर कायप्रयोग परिणत होता है परन्तु अमनुब्याहारक शरीर कायप्रयोग परिणत नहीं होता है । यावत ऋद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्येय- वर्षांयुष्क मनुष्याहारक शरीरकाय प्रयोग परिणत होता है, परन्तु अमृद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत सम्यग् दृष्टि पर्याप्त संख्ये वर्षायुष्क मनुष्याहारक शरीर कायप्रयोग परिणत नहीं होता है । विवेचन- -- आहारक काययोग — केवल आहारक शरीर की सहायता से होनेवाला वीर्यशक्ति का व्यापार आहारक काययोग होता है । *०८ आहारक मिश्र काययोगी और एक द्रव्य परिणाम जह आहारगमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए कि मणुस्साहारगमीसासरीरकायपयोगपरिणए, अमणुस्साहारंग जाव परिणए ? एवं अहा आहारगं तहेव मीसगं पि णिरवसेसं भाणियव्वं । -भग० श ८ | उ १ । प्र ४८ यदि एक द्रव्य आहारक मिश्र शरीर कायप्रयोग परिणत होता है तो वह मनुष्याहारक मिश्र शरीर का प्रयोग परिणत होता है, परन्तु अमनुष्याहारक मिश्र शरीरकाय प्रयोग परिणत नहीं होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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