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णक्खत्तजोगो कोणंगारजोगो चुण्णजोगो मंतजोगो इच्चेवमादओ। तत्थ भावजोगो दुविहोआगम-भावजोगो णोआगमभावजोगो चेदि । तत्थ आगमभावजोगो जोगपाहुडजाणओ उवजुत्तो। णोआगमभावजोगो तिविहो गुणजोगो संभवजोगो जुंजणजोगो चेदि । तत्थ गुणजोगो दुविहो सचित्तगुणजोगो अचित्तगुणजोगो चेदि । तत्थ अचित्तगुणजोगो जहा रूव-रस-गंध-फासादीहि पोग्गलदव्वजोगो, आगासादीणमप्पप्पणो गुणेहि सह जोगो वा। तत्थ सचित्तगुणजोगो पंचविहो
ओदइओ ओवसमिओ खाइयो खओवसमिओ परिणामिओ चेदि। तत्थ गदिलिंग-कसायादीहि जीवस्स जोगो ओदइयगुणजोगो। ओवसमियसम्मत्तसंजमेहि जीवस्स जोगो ओवसमियगुणजोगो। केवलणाण-दसण-जहाक्खादसंजमादीहि जीवस्स जोगो खइयगुणजोगो णाम। ओहि-मणपजवादिही जीवस्स जोगो खओचसमियगुणजोगो णाम। जीव भवियत्तादीहि जोगो पारिणामियगुणजोगो णाम । इंदो मेरु चालइदु समत्थो त्ति एसो संभवजोगो णाम । जो सो जुंजणजोगो सो तिविहो-उववादजोगो एगताणुवढिजोगो परिणामजोगो चेदि। एदेसु जोगेसु झुंजणजोगेण अहियारो, सेसजोगेहितो कम्मपदेसाणमागमणाभाषादो।
-~षट • खं० ४।२, ४।सू १७५/टीका।पु १०।पृ० ४३२-३४
योग चार प्रकार का होता है-नामयोग, स्थापनायोग, द्रव्ययोग और भाबयोग। नामयोग और स्थापनायोग सुगम हैं, अतः इसका अर्थ नहीं किया गया है । द्रव्ययोग दो प्रकार का होता है--आगम द्रव्ययोग और नोआगम द्रव्ययोग । इनमें योगप्राभूत का ज्ञाता उपयोगरहित जीव आगम द्रव्ययोग कहलाता है । नोआगमद्रव्ययोग तीन प्रकार का होता है-ज्ञायकशरीर भावी और तद्व्यतिरिक्त । शायकशरी और भावी नोआगमद्रव्ययोग सुगम हैं।
तदव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्ययोग अनेक प्रकार का होता है, यथा-सूर्य-नक्षत्रयोग, चन्द्र-नक्षत्रयोग, ग्रह-नक्षत्रयोग, कोण-अंगारयोग, चूर्ण योग, मंत्रयोग आदि ।
भावयोग दो प्रकार का होता है-आगमभावयोग तथा नोआगमभावयोग । आगमभावयोग योगप्राभृत के ज्ञाता उपयोगयुक्त जीव को कहा जाता है। नोआगमभावयोग तीन प्रकार का होता है-गुणयोग, संभवयोग तथा योजनायोग। गुणयोग दो प्रकार का होता है–सचित्तगुणयोग तथा अचित्तगुणयोग।
इनमें अचित्तगुणयोग-रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि गुणों से पुद्गल द्रव्य का योग होना; अथवा आकाशादि द्रव्यों का अपने-अपने गुणों के साथ योग होने को कहते हैं।
सचित्तगुणयोग पाँच प्रकार का होता है-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक ।
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