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________________ ( ६० ) से समासओ पंचषिहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्यओ, खेत्तमओ, कालमो, भाषमो, गुणो। दवओ णं पोग्गलत्थिकाए अणंताई दवाई। खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते । कालओन कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइभविंसुय, भवतिय, भविस्सइय-धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवहिए, णिच्चे। भावओ वण्णमंते, गंधभंते, रसमते, फासमंते । गुणओ गहणगुणे। -भग० श २ । उ १० । सू १२६ .४ योग और गुरुलघु ..... कण्हलेस्सा णं भंते ! किं गरुया ? नहुया ? गरुयलहुया ? अगरुयलहुया १ xxx। मणजोगो पइजोगो चउत्थएणं पदेणं, कायजोगोततिएणं पदेणं। -भग० श १ । उ ६ । प्र ४०८, ४१३ । पृ०६८ मनोयोग और वचनयोग अगुरुलघु होते हैं तथा काययोग गुरुलघु होता है । नोट -- यह विवेचन द्रव्ययोग की अपेक्षा है। मनोयोग-यावत् काययोग-भावयोग की अपेक्षा अगुरुलघु है। .०५ द्रव्ययोग गुरुलघु-अगुरुलघु है पोग्गलस्थि काएणं भंते ! कि गरुए ? लहुए १, गरुयलहुए ? अगरुयल हुए ? गोयमा! णो गरुए, णो जहुए ? गरुयलहुए वि ? अगुरुयलहुएषि । xxx । मणजोगो, पइजोगो चउत्थपदेणं, कायजोगो ततिएणं पदेणं ॥ -भग० श १ । उ ६ । सू ४०४, ४१३ द्रव्यमनोयोग तथा द्रव्य वचन योग अगुरुलघु है तथा द्रव्य काययोग गुरुलघु है। .०६ द्रव्ययोग अजीवोदयनिष्पन्न भाव है क्योंकि जीवद्वारा ग्रहण होने के बाद द्रव्य योग का प्रायोगिक परिणमन होता है। सेकिंतं अजीयोदयनिष्पन्ने ? अजीवोदयनिष्पन्ने अणेगविहे पन्नत्ते, तंजहा-उरालिय वा सरीरं, उरालियसरीरपओगपरिणामियं वा दवं, वेडषियं वा सरीरं, वेउब्वियसरीरपओगपरिणामियं वा दव्वं, पवं आहारगं सरीरं, तेयगं सरीरं, कम्मगसरीरं च भाणियव्वं । पओगपरिणामिए वण्णे, गंधे, रसे, फासे, सेत्तं अजीवोदयनिष्पन्ने । -अणुओ० सू १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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