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________________ ( ८४ ) मित्रमाहारकशरीरस्य प्रारम्भकाले परित्यागकाले च आहारकमिश्रं, न त्वेकस्यामप्यवस्थायामौदारिकमिश्रमिति प्रतिपन्नाः। - पण्ण० प १६ । सू १.६८ । टीका आहारक मिश्रं यत्र औदारिकेणेति गम्यते स आहारकमिश्रः, सिद्धप्रयोजनस्य चतुर्दशपूर्व विद आहारकं परित्यजत औदारिकमुपाददानस्य आहारक प्रारभमाणस्य वा प्राप्यते, स एव कायस्तेन योग आहारकमिश्रकाययोगः ४। -कर्म० भा ४ । गा २४ । टीका आहारकमिश्रस्तु साधिताहारककायप्रयोजनः पुनरौदारिकप्रवेशे औदारिकेणेति। -ठाणा० स्था ३ । उ १ । सू १३ । टीका । पृ• ५४१ आहार-कार्मणस्कन्धतः समुत्पन्नवीर्येण योगः आहारमिश्रकायथोगः। -षट् ० खं १, १ । सू ५६ । टीका । पु १ । पृ० २६३ आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग आहारक शरीर से औदारिक शरीर में प्रवेश करते समय होता है। ऐसा कहा जाता है-- जब आहारक शरीर धारण करनेवाला जीव कृतकार्य होकर अर्थात् अपना उद्देश्य पूर्ण कर पुनः औदारिक शरीर को ग्रहण करता है तब यद्यपि मिश्रता उभयनिष्ठ होती है तथापि औदारिक शरीर में प्रवेश आहारक शरीर के बल से होता है, अतः आहारक की प्रधानता रहती है और उसी नाम से प्रसिद्धि पाता है, औदारिक नाम से कथन नहीं होता है। यह सिद्धान्त के अभिप्राय से कहा गया है, कर्मग्रन्थकारों के अनुसार वैक्रियशरीर के प्रारम्भकाल और परित्यागकाल में वैक्रिय मिश्र रहता है तथा आहारक शरीर के प्रारम्भकाल और परित्यागकाल में आहार कमिश्र रहता है, किन्तु किसी भी अवस्था में औदारिकमिश्र नहीं रहता है । जहाँ पर आहारक शरीर औरारिक से मिश्रित रहता है वह आहारकमिश्र है। यह चतुर्दश पूर्वधारी के जिस निमित्त से आहारक शरीर धारण करता है वह प्रयोजन सिद्ध कर आहारक शरीर का परित्याग करते समय और औदारिक को ग्रहण करते समय तथा आहारक शरीर का प्रारम्भ करते समय प्राप्त होता है, तद रूप काय के द्वारा होनेवाले योग-प्रवृत्ति को आहारकमिश्र काययोग कहते है । आहारक शरीर के द्वारा होनेवाला कार्य सिद्ध हो जाने पर फिर औदारिक शरीर में प्रवेश करते समय आहारकमिश्र काययोग होता है। आहारक और कार्मण शरीर के स्कन्धों से उत्पन्न वीर्य-पराक्रम के द्वारा होनेवाले योग--सम्बन्ध को आहारक मिश्रा काययोग कहते हैं । ०२.०२२ कार्मण काययोग की परिभाषा तैजसकार्मणशरीरप्रयोगो विग्रहगतौ समुद्घातावस्थायां वा सयोगिकेवलिनस्तृतीयचतुर्थपञ्चमसमयेषु, इह तैजसं कार्मणेन सहाव्यभिचारीति युगपत्तैजसकार्मणग्रहणम् । -पण्ण० प १६ । स १०६८ । टीका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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