________________
xxx बज्झत्थचिंतावावदमणादो समुप्पण्णजीवपदेसपरिप्कंदो मणजोगो णाम। -षट् • खं ४, २, ४ । सू १७५ । टीका । पु १० । पृ० ४३७
मनसा योगो मनोयोगः। अथ स्यान्न द्रव्यमनसा सम्बन्धो मनोयोगः मनोयोगस्य देशोनत्रयस्त्रिंशत्सागरकालस्थितिप्रसङ्गात् । न सक्रियावस्था योगः योगस्याहोरात्रकालप्रसङ्गात् । न भावमनसा सम्बन्धो मनोयोगः तस्य ज्ञानरूपत्वतः उपयोगान्तर्भावात् इति न त्रितयविकल्योक्तदोषः, तेषामनभ्युपगमात् । कः पुनः मनोयोग इति चेद्भावमनसः समुत्पत्त्यर्थः प्रयत्नो मनोयोगः।
षट० ख० १, १ । सू ४७ । टीका । पु० १ पृ. २७८-७६ मनन करना मन है। औदारिकादि शरीर के व्यापार के द्वारा गृहीत मनोद्रव्य समूह के सहयोग से होनेवाला व्यापार-चेष्टा मनोयोग कहलाता है। अथवा जिससे मनन किया जाता है वह मन अर्थात् मनोद्रव्य मात्र है।
काययोग के द्वारा मनः प्रायोग्य वर्गणाओं से ग्रहण करके मनोयोग के द्वारा मन रूप से परिणमित जो पदार्थ की चिन्ता के प्रवर्तक द्रव्यों को मन कहते हैं। इस प्रकार के मन के सहकार से होनेवाला योग अर्थात् प्रवृत्ति को मनोयोग कहा जाता है। अथवा मन को विषय बनाने वाले योग को मनोयोग कहा जाता है ।
बाह्य पदार्थों के चिन्तन में व्यापृत मन से जो जीव-प्रदेशों का परिस्पन्दन होता है वह मनोयोग है।
___ मन के साथ योग-सम्बन्ध होना मनोयोग है। द्रव्य मन के साथ सम्बन्ध होना मनोयोग नहीं है, क्योंकि ऐसा स्वीकार करने पर देशोन तैंतीस सागर काल पर्यन्त मनोयोग की स्थिति का प्रसंग आ जायगा। सक्रियावस्था भी योग नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर अहोरात्र योग की स्थिति का प्रसंग आ जायेगा । भाव मन के साथ सम्बन्ध होने को भी मनोयोग नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसके ज्ञान रूप होने के कारण उपयोग में अन्तर्भाव हो जायगा। इस प्रकार तीन विकल्पों में दिखाये गये दोष स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि वे दोष प्राप्त नहीं होते। फिर तो मनोयोग का लक्षण होना चाहिए । भावमन की उत्पत्ति के लिए किया जानेवाला प्रयत्न मनोयोग है । .०२.०१ सत्यमनोयोग की परिभाषा
सन्तो मुनयः पदार्था वा तेषु यथासंख्यं मुक्तिप्रापकत्वेन यथावस्थितवस्तुस्वरूपचिन्तनेन च साधु सत्यं-अस्ति जीवः सदसदूपो देहमात्रव्यापीत्यादिरूपतया यथावस्थितवस्तुचिन्तनपरं, सत्यं च तत् मनश्च सत्यमनः तस्य प्रयोगो-व्यापारः सत्यमनःप्रयोगः xxx।
-पण्ण० प १६ । सू १०६८ । टीका तत्र सन्तो मुनयः पदार्था वा, तेषु यथासंख्यं मुक्तिप्रापकत्वेन यथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org