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टीका - x x x 'द्वयोः' शुक्लयोः परयोः- उत्तरकालभावितोः प्रधानयोर्वा सूक्ष्मक्रियानिवृत्ति-व्युपरत क्रियाऽप्रतिपातिलक्षणयोर्यथासंख्यं सयोगायोगकेवलिनो ध्यातार इति x x x |
यहाँ पर विवेचन है सूक्ष्मक्रियानिवृत्ति अर्थात् जिस अवस्था में काययोग की क्रिया सूक्ष्म हो जाती है - ऐसा ध्यान करनेवाला सयोगी । व्युपरतक्रियाऽप्रतिपाती अर्थात् जिस अवस्था में योग की क्रिया नहीं होती है—ऐसा ध्यान करने वाला अयोगी ।
सयोग - अयोग- इन दो शब्दों का द्वन्द्व समास मूलक शब्द सयोगायोग । - ०२०२ सजोगिभवत्थ केवलणाणं ( सयोगिभवस्थ केवलज्ञान )
योगयुक्त अवस्था का केवलज्ञान ।
मूल-से किं तं भवत्थ केवलणाणं ? भवत्थकेबलणाणं दुविहं पण्णत्तं । तं जहा - सयोगिभवत्थ केवलणाणं × × ×।
टीका - सह योगेन वर्त्तन्ते ये ते सयोगा मनोवाक्कायास्ते यथासम्भवस्य विद्यन्ते इति सयोगी सयोगी चासो भवस्थश्व सयोगिभ बस्थस्तस्य केवलज्ञानं सयोगिभवस्थ केवलज्ञानम् ।
जिस साधक में मन, वचन और काय के व्यापार विद्यमान रहते हैं, उसके उस स्थिति में होनेवाला केवलज्ञान-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान ।
भवस्थ केवलज्ञान का प्रथम भेद-सयोगिभवस्थ केवलज्ञान |
• ०२०३ सहिमेत्तसजोगिकेवलीणं ( षष्ठिमितसयोगिकेवली )
- नंदी० सू० ३५
- षट् ० ० खं १, ८ । सू १३७ | टीका । पृ ५ । पृ २६८
सयोगिकेवलियों की संख्या ६० ।
टीका - पदर- लोगपूरणेसु उकस्सेण सहिमेत्तसजोगिकेवलीणमुषलंभा । प्रतर और लोकपूरण समुद्घात में सयोगिकेवलियों की उत्कृष्ट संख्या का प्रमाण ६० है ।
०२०४ समाहिजोगे ( समाधियोग )
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- दसवे० अ ६ । उ १ | गा १६
मोक्ष की साधना में सहायभूतध्यानविशेष |
महागरा आयरिया महेली समाहिजोगे सुयसीलबुद्धिए । संपाविकामे अणुत्तराई आराहए तोलए धम्मकामी ॥ टीक - समाधियोगः- ध्यानविशेषैः ।
अनुत्तर ज्ञान आदि गुणों की सम्प्राप्ति में साधक को कर्मों की निर्जरा करने के लिए सहायभूत ध्यान विशेष-समाधियोग |
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