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( ५८ ) .... टीका-विविक्त-एकान्ते वासः-स्थानं वसतिर्यस्य स ससमितियोगयुक्तो भावितो-वासितः अन्तरात्मा जीपः।
___ अन्तरात्मा को वासित करने के लिए लोकाकुल स्थान को त्याग कर अलग एकान्त स्थान में रहकर साधु का संयम में व्यापृत रहना-विविक्तवासवसतिसमितियोग । '०१८८ विविहाओ य जोगजुंजणाओ (विविध योगयोजन )
-पण्हा० द्वा अप्रासू पृ.६८० अनेक प्रकार के उपायों का संयोजन ।
मूल-परिग्गहस्सेष य अट्ठाए xxx विविहाओ य जोगजंजणाओ xxx संचिणंति मंदबुद्धी।
टीका-विधिधाश्च योग-योजनान् बहु-प्रकारांश्च वशीकरणप्रयोगान् परिग्रहवशीकरणार्थ शिक्षन्ति ।
यहाँ प्रकरण परिग्रह का है। पर-धन को अपने अधीन करने के लिए मंदबुद्धि व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले अनेक प्रकार के उपायों का संयोजन-विविध योगयोजन । २०१८९ वेउब्वियमीससरीरकायप्पओगे (वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग)
-पण्ण० प १६।सू १०६८ वैक्रियमित्र शरीर रूप काय का प्रयोग-योग ।
पण्णरसषिहे पओगे पण्णते। तं जहा-xxx वेउब्वियमीससरीर. कायप्पओगे १२ xxx।
टीका-वैक्रियमिधशरीरकायप्रयोगो देवनारकाणामपर्याप्तावस्थायां, मिश्रता च तदानीं कार्मणेन सह वेदितव्या xxx। ..
देव और नारकियों में अपर्याप्त अवस्था में कार्मण से मिभित वैक्रिय प्रधान शरीर के होनेवाले व्यापार-वैक्रियमिश्रकायप्रयोग। .०१९० वेउब्वियसरीरकायप्पओगे (वैक्रियशरीरकायप्रयोग)
-पण्ण० प १६ास १०६८
वैक्रिय शरीर रूप काय का प्रयोग-योग।
पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते। तंजहा-xxx वेउब्धियसरीरकायप्पओगे ११ xxx I
टीका-वैक्रियशरीरकायप्रयोगो वैक्रियशरीरपर्याप्त्या पर्याप्तस्य।
वैक्रिय लब्धि के द्वारा वैक्रिय शरीर योग्य पर्याप्ति पर्याप्त शरीर रूप काय का व्यापार-वे क्रियशरीरकायप्रयोग।
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