________________
.०१५७ पणिहाणजोगजुत्तो (प्रणिधानयोगयुक्त) -प्रवसा• गा.२६६ .०१५८ पणीयाहार विरतिसमितिजोगेण (प्रणीताहार विरतिसमितियोग)
-पण्हा० अ६।दा ४ासू ११॥पृ० ७०२ भिक्षाचरी में सावद्य आहार के प्रति साधु का संयम रूप व्यापार ।
मूल-पंचमंग-आहारपणीय-निद्धभोयण-विषजए x x x न दप्पणं न बहुसो न नितिकं न सायसूपाहिकं न खद्ध, x x x न य भवति विन्भमो भंसणा य धम्मस्स। एवं पणीयाहारविरतिसमितिजोगेण भाषितो भवति अंतरप्पा xxx जिइंदिए बंभचेरगुत्ते ।
टीका- x x x आहारोऽशनादिः स एवंविधसत्याज्य इतियोगः कीदृशः ? प्रणीतो गलत्स्नेहबिन्दुः स च स्निग्धभोजनं तस्य विवर्जको यः स तथा xxx दर्पणं-दर्पकारकं नैष भुजते, उक्तव्यतिरेकादन्यदपि मदकारि नैव भुजते, पुनः न बहुशो-दिनमध्ये न बहुवारं न नैत्यिकं, न प्रतिदिनं, xxx एवं प्रणीताहारविरति समितियोगेन भावितो-वासितो भवति अन्तरात्मा-जीव: xxx ।
आत्मा को भावित करने के लिए गोचरी में मिले हुए अधिक तेल-घी युक्त उतेजक स्निग्ध भोजन, अत्यधिक या दिन में अनेक बार, जो चारित्र पालन में बाधक सिद्ध हो, ऐसे भोजन का परिहार कर संयम का पालन रूप व्यापार-प्रणीताहारविरतिसमितियोग । •०१५९ पभावणा-जोग-निग्गहो ( प्रभावना-योग-निग्रह)
- णमोकार महामंत्र पृष्ट १६ मूल-पभावणा जोग निग्गहो, उवज्झाय गुणं वन्दे ।
बारह अंग अत के ज्ञाता, करणसत्तरी, चरणसत्तरी युक्त आठ प्रकार धर्म की प्रभावना करनेवाले, मम, वचन, काय के योगों का निग्रह करनेवाले-इन २५ गुणों से युक्त उपाध्याय होते हैं। ०१६० पमई जोगं (प्रमर्द योग)
-सम• सम दासू ६ संघर्षण रूप योग-सम्बन्ध ।
अट्ठ नक्खत्ता चंदेण सद्धि पमई जोगं जोएंति, तंजहा-कत्तिया रोहिणी पुणवसू महा चित्ता घिसाहा अणुराहा जेट्ठा।
टीका-अष्टौ नक्षत्राणि चन्द्रण साधं प्रमई -चन्द्र (:) मध्येन तेषां गच्छन्तीत्येवं लक्षणं योग-सम्बन्धं योजयन्ति -कुर्वन्ति, xxx यानि च दक्षिणोत्तरयोगीनि तानि प्रमई योगीन्यपिकदाचिद् भवन्ति ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org