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है उस भवस्थ मनुष्य के अन्तिम समय में होनेवाला केवलज्ञान--- चरमसमयअयोगिभवस्थकेवलहान '०८४ चरिमसमयसजोगिभवत्थकेषलणाणे (चरमसमयसयोगीभषस्थकेवलज्ञान
-ठाण• स्था २ । उ १ । सू ६१ । पृ० ५०६ सयोगी अवस्था के चरम अर्थात् अन्त समय में होनेवाला केवलशान ।
मूल-संजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा --पढम x x x | अहवा-चरिमसमयसजोगिभवत्थकेषलणाणे चेव,xxx।
____टीका-'अथवे' त्यादि, चरमः-अन्त्यः समयो सयोग्यवस्थायाः स तथा।
सयोगिभवस्थकेवलज्ञान का एक वैकल्पिक भेद-चरमसमयसयोगिभवस्थकेवलज्ञान । ०८५ जयणघडणकरणचरियविणयगुणजोगसंपउत्ते (जयणघटणकरणचरित विनय गुण योग संपयुक्त)
-पण्हा०४ १६६ .०८६ जहण्णये जोगे ( जघन्य जोग)
-गोक• गा २१५ अल्प रूप से योग का प्रयोग।
सुहम निगोदअपज्जत्तयस्स पढमे जहण्णये जोगे।
सत्तण्हं तु जहण्णं आउगबंधेवि आउस्स ॥ ___ सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव अपने पर्याय के प्रथम समय में जब आयु के अतिरिक्त सात मल प्रकृतियों का जघन्य प्रदेशबन्ध करता है उस समय उसके होनेवाला योग-जघन्य योग। .०८७ जहण्णएण जोगेण ( जघन्य योग )
-षट् खं ४,२ । सू १० । पु १० । पृ. ३८ जघन्य योग अर्थात् योग की निम्न प्रक्रिया ।
जदा जदा आउयं बंधदि तदा तदा तप्पाओग्गेण जहण्णएण जोगेण पंधदि।
जब-जब आयुबन्ध होता है तब-तब उसका कारण होता है-तत्प्रायोग्य जघन्य
योग।
०८८ जहण्णुक्कल्सजोगा ( जघन्य-उत्कृष्ट योग)
-षट् खं ४,२,४ । सू १० । टीका । पृ १० । पृ० ३६ योग का निम्नतम और उच्चतम रूप । कम्मद्विदिपढमसमयप्पटुडि जाष तिस्से चरमसममओ ति ताप गुणिद
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