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टीका - तैजसकार्मणशरीरप्रयोगे बिग्रहगतौ समुद्घातावस्थायां वा सयोगिकेवलिनस्तृतीयचतुर्थपश्चमसमयेषु, इह तैजसं कार्मणेन सहान्यभिवारीति युगपत्ते जसकार्मणग्रहणम् ।
किसी जीव के विग्रहगति करते समय तथा सयोगिकेवली के समुदघात के आठ समयों में से तृतीय, चतुर्थ और पंचम समय में होनेवाले तेजस - कार्मण शरीर के चेष्टाकार्मणशरीरकायप्रयोग |
तेजस शरीर- कार्मण शरीर के साथ अव्यभिचरित होकर रहता है ।
०७२ कय- तिजोय ( कृत तीन योग )
कय- तिजोय - सुणिरोहु अणिट्ठउ । किरिया - छिण्ण झाणि परिट्टिउ |
भगवान् ने अपने मन, वचन और काय इन तीनों योगों का भले प्रकार निरोध करके छिन्न क्रिया-निवृत्ति नामक ध्यान धारण किया ।
०७३ करण जोग ( करण योग )
०७४ कलायजोगा ( कषाययोग )
कर्म के आगमन के कारणभूत कषाय और योग ।
वीरजि० संधि कड १
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- प्रवसा गा ८४०
- गोक० गा ७८६
मिच्छत्तं अविरमणं कसायजोगा य आसवा होंति । पण बारस पणुवीलं पण्णरसा होंति तब्भेया ॥
कषाय— क्रोध, मान, माया और लोभ - अनन्तानुबन्धी, प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी तथा संज्वलन के भेद से १६ तथा हास्य, रति आदि नौ नोकषाय मिलाकर २५; और मनोयोगादि १५ जो कर्म आगमन के कारण हैं, वे - कषाययोग |
• ०७५ कायजोग चलणा ( काययोग चलना )
-भग श १७ उ ३
०७६ काबोय-नील- कालालेस्साओ (कापोत- नील- कृष्णलेश्या ) - ध्याश० गा १४ काचोय-नील- कालालेस्साओ णाइसंकिलिट्ठाओ । अज्झाणोवगयस्स कम्मपरिणामजणियाओ ॥
टीका - कापोत- नील- कृष्णलेश्याः, किम्भूताः १ - 'नातिसंक्लिष्ट' रौद्रध्यानलेश्यापेक्षया मातीचाशुभानुभावा भवन्तीति क्रिया, कस्येत्यत्यात आहआर्तध्यानोपगतस्य जन्तोरिति गम्यते, किंनिबन्धना एताः ? इत्यत आहकर्मपरिणामजनिताः XXX ।
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