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( १४ )
टीका - अलीकं - मृषाभाषणं निकृतिमीयामयं तद्योगप्रचुरं xxx पुनर्भवकारणं चिरपरिचितं दुरन्तं XXX ।
बार-बार संसार में जन्म-मरण का कारण - मायायुक्त मिथ्याभाषण रूप वचनयोग का आरम्भ करना - अलीक क- निकृति - सादि-योगवहुल ।
३१ अव्वाधार विसजोगजुत्ते ( अव्यापार व्युत्सृष्ट योग युक्तः )
भावि तीर्थंकर -- प्रथम तीर्थंकर महापद्म जो आगामी उत्सर्पिणी काल में होंगे । दीक्षा के पश्चात् वे अभिग्रह भी धारण करेंगे ।
- ठाण० स्था ६ | सू ६२ । १० ८६६
( महापमं ) तपणं से भगवंअणगारे भविस्सति इरियासमिते भासा - समिते एवं जहा वद्धमाणसामी तं चेव णिरवसेस जाव अव्वावार विउसजोग जुत्ते ।
महापद्म भगवान् दीक्षित होने के पश्चात् - ईयसमिति, भाषासमिति [ भगवान् वर्धमान की भाँति सम्पूर्ण विषय वक्तव्य है, यावत् ] के अव्यापार तथा अव्युत्सृष्ट योग से युक्त होगे ।
३२ अधिसंवादनाजोगे ( अविसंवादनायोग )
जिस प्रकार कहा जाय उसी रूप में विश्वास कर लेना ।
ठाण स्था ४ | उ १ । सू २५४
मूल - उग्विहे सच्चे पन्नन्ते तं जहा - काय उज्जुयया X xx अविसंवायणाजोगे ।
टीका - अनाभोगादिना गवादिकमश्वादिकं यद्वदति कस्मैचित्किञ्चिदभ्युपगम्य वा यन्न करोति सा विसंवादना तद्विपक्षेण योगः - संबन्धोऽ विसंवादनायोग इति ।
३३ असश्चवइप्पओगे ( असत्यवचनप्रयोग )
अनाभोगादि के कारण किसी के पास जाकर गो, अश्व आदि कुछ कहना, परन्तु इस कथन को अस्वीकार कर देना विसंवादना है और इसके विपक्ष के साथ अर्थात् जो कुछ कहा जाय उसको सत्य मानकर उसके साथ सम्बन्ध स्थापित करना - अविसंवादनायोग है । अविसंवादनायोग चतुर्विध सत्य का चतुर्थ भेद है ।
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सत्य के विपरीत अर्थात् मिथ्या वचन का प्रयोग करना ।
पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते, तं जहा - ( मोसवइपओगे ) एवं बप्पओगे उहा x × ×1
टीका- ' एवं बप्पओगेषि चउहा' इति, यथा मनः प्रयोगश्चतुर्धा तथा
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पण प १६ । सू १०६८
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