SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૭૪ संपति [सम्प्रस्थित] प्रयाग रेल, गयेल भग. २२८,४०७, ४६५, ६२६, ६४०; पन्न. ४४१; संपट्टिय [सम्प्रस्थित] खो 'उपर' उब. ३१,४९: दसा. १०१; संपडिबूह [ सं + प्रति + बृंह] प्रशंसा ईश्वी जंबू. १२१,२२९: सूय. ६६४; संपडिलेह [ सं + प्रति + लिख] प्रत्युप्रेक्षए। खु, નિરીક્ષણ કરવું उत्त. १०४८; संपडिलेहियव्व [सम्प्रतिलेखितव्य ] प्रत्युपेक्षए॥ કરવા યોગ્ય, નિરીક્ષણ કરવા યોગ્ય दस. ५०६; संपडिवज्र [सं + प्रति + पद्] स्वीकार खो भग. ११३: दस. ४७३: उत्त. १३५; संपविजेता [सम्प्रतिपद्य ] स्वीद्वार, गंगीर उत्त. १०५७; संपडिवाइय [सम्प्रतिपातित] स्थापन रेल, સ્વીકારેલ दस. १५; . संपडिवाय [सं + प्रति + पद्]स्वीर खो दस. ४५२; संपत्ति [सम्प्रणदित] अनने मधुर लागे तेवो શબ્દ पन्न. २०३,२१७: संपदिय [सम्प्रणदित] खो 'पर' पन्न. २०५: संपणाइय [सम्प्रणादित] दुखो '५२' राय. १५.३६; संपादित [सम्प्रणादित] खो 'पर' जीवा. १७५, १८७ : जंबू. १३: संपणाम [ सं + प्र + नामय् ] अर्पए। Jain Education International उत्त. ८६३ : पोलिय[सम्प्रद्य] तैयार सुरीने, यसावीने दस. १०५; आगमसोस संपत्त [सम्प्राप्त] पास, आप्त रेस ठा. ८७२,८७५; सम. १२७,१४१,१५६; भग. ११२.११६, १७४, १७६, २९१,४०७, ४१०,५२१,६२६.६३९,७५६; नाया. ५९.१८,२२,२५,३०,४०,४१,५३. ५४,६१.६७, ७४ थी ७६,८१,८७,११०. १४०, १४७, १४८, १५६, १५७,१५९, १७८. १८३.१८४,२०८,२११ थी २१३,२१८, २२०.२४१: उवा. २,४, ५,२०,२६,२९,३२,३४,३७, ३८,४१,४३,४८,४९,५७,५८; अंत. १,३, १५, १७, १८,२०,२७; अनुत्त. १,३,६,७,१०,१२,१३; विवा. २.४, ५, १०, ११.१५, १७, १८, २३. २४,२६ थी ३५,३७,४६, उब. १२,२७,२८,४९,५१; राय. ५.४४,५४,५९,८१,८२: जीवा. १८० : सूर. ३३: जंबू. २२७; चंद. ३७; निर. ४,५, १३, १५, १९, २०, कप्प. १२: पुप्फि. ३ थी ५: वहि. १,३ : पुप्फ. १.३: तंदु. ११,५२.५४; वीर. १०: दस. ७६; दसा. ९६ : उत्त. १६०,६७४,८११,८१९,९३०, १०२५.१४६४.१५३० : संपत्तनियससरूव [सम्प्राप्तनिजकस्वरुप ] आत्म સ્વરૂપને પ્રાપ્ત કરેલ वीर. १०: संपत्ति [सम्प्राप्ति ] भेज, संगम, प्राप्ति, आगमन ठा. ३६४ : For Private & Personal Use Only भग. १५२,१५५,१५६,१८९.३८९.५५७, ५९४: नाया. २०,२१: निर. ५: जीवा. ३३७ : www.jainelibrary.org
SR No.016027
Book TitleAgamsaddakoso Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgamdip Prakashan
Publication Year2001
Total Pages530
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy