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Proverbs in AMKV. early stage of old Gujarati or old Western Rajasthani or what Umashankara Joshi preferred to call •Maru-Gurjara'
There are some interesiting sayings, possibly proverbs, which seem to have been very popular. Some of them remind us of the close observation by our author of AMKV., of everyday life of people. Iquote only a few instances लाक्षारसेन केनाऽऽपि कार्पासः किमु रज्यते ।। (7.19); मरणे वि महासत्ता न उणो माण परिहरति । ( 39.25); तं नत्थि कि पि विसमं जन सहावइ विही एसो । ( 253,268); अस्थवणम्मिवि रविणो किरणा उड्ढे चिय फुरति । (217.641); तं नत्थि एत्थ कल्लाणं तवाओ जं न जायए । (55.312 ); दीवयसिह व महिला लद्धप्पसरा भयं देइ । (194.29); सर्व सत्त्वे प्रतिष्ठितम् (363.36); रागंधनयणजुयला कज्जाऽऽकजाई न नियंति । ( 197.137); परदेसो वि सदेसो सत्ताहियपुनवंताणं । ( 306.45); अमयकिरणनिम्मलकुले मसीकुच्चओ मए दिनो ( 340.204); रुहिरेण धोइयं नहि सुज्झइ रुहिरारुणं वत्यं । (341.242); बोढुं गयपल्लार्ण कुमार कि रासहो तरइ ? । (356.57); मज्झ :पई नियगेहे जीवउ दीवालियं लक्खं । (289.141); दक्खारसो न महुरिज्जइ सकराए । ( 300.337); जे चितिउं न सका न यावि सहिउं न वा कहिउँ । ( 300.355); बका हु कीलिया बकवेहस्स । ( 285.24 ); पडउ घयं सूयमज्झम्मि । ( 246.33); वालविणिवायमेत्तं पि मित्त न भयं...। (175.24 ); मइसुइवियलो अन मणम्मि अचं कुणइ कजं ( 150.68); किं वा छालीए मुहे कुंभ माई (v. 1. मायई ) ? । (154 line 6); भमिरतुंबभरयाण अन्तरे अंगुली मज्झ । (143.91 ); अट्टमर्ट पि सिक्खिज्जा सिक्खियं न निरत्ययं । (147.44); हुयहु घरह म बारह । (137.5); नारी चलंतिया मारी । (142.55); हत्थत्थकंकणाणं कि कजं दप्पणेणऽहवा । (116.59); दुवियाय होइ परं न दुमाया एस पसिद्धी जणे पयडा । (118.111); न गामसामियाओ लन्भइ मंडलसामित्तं । (120.18); ता तीए मुहे छारो दायब्वो कि वियप्पेण । (121.26 ); खज्जन्ती परिवद्धइ कडू । (61.73; ज्यवसणम्मि गिद्धा कि दुक्खं जं न पावन्ति । ( 49.100); उवरिं तवेइ सूरो हेट्ठा धरणी । (51.146); नत्थि भयं जग्गमाणस्स । ( 51.153); ता मज्झ महे भवइ छारो। (37.26); ससएण व खोडेण अणेण वडवाडी रुद्धो। (40.71) पालबचुको मकडो ब्व वेलक्खमावनो । (134.22) खीरे खलु खंडपक्खेवो । ( 355.13 ) etc.
Oriental Institute,
BARODA. 10-3-1961.
UMAKANT P. SHAR
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