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प्रकाशकीय
स्व. आगमप्रभाकर पू. मुनिराज श्री पुण्यविजयजी म.सा. द्वारा संपादित सवृत्तिक आख्यानकमणिकोश का पुन:मुद्रण प्रकाशित करते हुए हमें आनंद हो रहा है।
मूल आख्यानकमणिकोश प्रसिद्ध उत्तराध्यन-सुखबोधा वृत्ति के रचयिता बृहद्गच्छीय श्री नेमिचन्द्रसूरि विरचित ५३ गाथाओं की रचना है, जो उन्होंने वि.सं. ११२९-११३९ (ई.स. १०७३-१०८३) के मध्य रची थी। बृहद्गच्छके ही जिनचन्द्रसूरि-शिष्य आम्रदेवसूरिने उस पर वि.सं. ११९० (ई.स. ११३४) में गुजरात के धवलक्कपुर (धोळका) में १४००० श्लोकप्रमाण विस्तृत पद्यबद्ध वृत्ति रची थी। वृत्ति भाषा, ईतिहास, शैली, कथारस एवं सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । प्रस्तुत प्रकाशन में मूल और वृत्ति दोनों समाविष्ट हैं।
प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ने ई.स. १९६२ में इस ग्रन्थ का प्रकाशन किया था। कई वर्षों से ग्रन्थ अप्राप्त हो चूका था। परम पूज्य आचार्यश्री मुनिचन्द्रसूरिजी म. सा. ने पुन:मुद्रण की प्रेरणा के साथ ग्रंथगत अशुद्ध स्थानों को शुद्ध करके अंतिम प्रेसकोपी बनवाकर हमें दी अतएव हम उनके अत्यंत आभारी हैं । परमपूज्य आचार्यश्री नरचन्द्रसूरिजी म.सा. तथा प.पू. मुनिश्री धर्मतिलकविजयजी म.सा. ने संस्था के प्रति जो स्नेह एवं सद्भाव प्रदर्शित किया है तथा प्रकाशन कार्य में सहाय करने के लिए विविध संस्थाओं को प्रेरित किया है उसके लिए हम उनके ऋणी रहेंगे। प्रस्तुत ग्रंथ के पुन:मुद्रण में आर्थिक सहाय दाता श्री झालावाड जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छसंघ-सुरेन्द्रनगर के प्रति आभार प्रदर्शित करते हुए हमें खुशी होती है।
पुन:मुद्रण कार्य अच्छी तरह संपन्न करने के लिए माणिभद्र प्रिन्टींग प्रेस के श्री कनुभाई भावसार को
धन्यवाद।
अहमदाबाद
- रमणीक शाह
अक्षयतृतीया, सं. २०६१
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