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प्रस्तावना
नाम देवेन्द्रमणि और नेमिचन्द्रसूरि भी मिलता है। संभव है कि आचार्यपदवी के बाद स्वायत्त प्रतिओं में और नई लिखी जानेवाली प्रतियों में उन्होंने स्वयं अपना नाम नेमिचन्द्रसूरि लिखवाया हो या उनके शिष्योंने भक्तिवश ऐसा किया हो । उत्तराध्ययन सूत्रवृत्ति आचार्यश्री विजयमंगसूरि द्वारा संपादित हो चुकी है । इस वृत्ति में मूल सूत्र की व्याख्या तो । संस्कृत में है किन्तु तदन्तर्गत कथाओं की रचना प्राकृत भाषा में है। रत्नचूडकथा' नामक गद्यपद्यात्मक प्राकृत भाषा का ग्रन्थ उन्होंने गणीपद की प्राप्ति के बाद ही दिया है। उत्तराध्ययनवृत्ति की तरह ही इस ग्रन्थ की भी देविंदगणी (देवेन्द्र गाणी) और नेमिचंद्रसूरि ( नेमिचन्द्रसूरि इन दो नामों का उल्लेख करनेवाली ताडपत्रीय प्रतियां मिलती हैं। देखो, विजयकुमुदसूरि सम्पादित' (श्री तपागच्छ जैन संघ खंभान द्वारा प्रकाशित प्रस्तुत ग्रन्थ ( रमणचूडरायचरिथ) की प्रशस्ति के प्रत्यन्तर । इस संपादन में अनुपयुक्त खेतरवसी पाडा पाटज भण्डार की ताडपत्रीय प्रति में ग्रन्थकार का नाम नेमिचन्द्रसूरि लिखा हुआ है। महावीरचरित्र गद्यपद्यात्मक प्राकृत भाषा में रचना है। इसका रचनासंवत् १९४१ है । यह ग्रन्थ भी हमारे पूज्य गुरुवर्थ मुनिश्री चतुरविजयजी द्वारा सम्पादित हो कर आत्मानंद्रसभा, भावनगर द्वारा प्रकाशित हो चुका है। उपर बताई गई पांच कृतियों में से दो कृतियाँ गमिपद के पूर्व और दो कृतियाँ गणिपद के बाद और एक कृति आचार्य पद के बाद की रचना है। इसके अतिरिक्त देवन्द्रसाधु- देवेन्द्रगणनेमिचन्द्रसूरि के विषय में विशेष जानकारी हमें उपलब्ध नहीं है। मूल ग्रन्थकार की पूर्वापर श्रमणपरम्परा में से कुछ अन्य जानकारी भी मिलने की संभावना है। परन्तु हम यहां इतने से संतुष्ट हो जाते हैं।
आख्यानकमणिकोशनि
प्रस्तुत वृत्ति का लोक प्रमाण, रचनास्थल, रचनासंवत् और उस समय के शासक राजा आदि का परिचय आगे वृत्तिकार के परिचय में दिये गये परिचयप्रशस्ति के सारांशसे जान लेना चाहिए ।
मूल गाथा की वृत्ति संस्कृत भाषा में है। अन्य गत १२७ आख्यानकों में से १४, १७, २३, ३९, ४२, ६४, १०९, १२१, १२२ और १२४ ये दस आख्यानकों को छोड़ शेष ११७ आख्यानकों (७३ वाँ भावनिकाख्यानक में अवान्तर कथा के रूप में आनेवाला चारुदत्तचरित्र को छोड़) की रचना प्राकृत भाषा में है। इस में से प्राकृतगथ में रचा हुआ ४७ वाँ चंडचूडाख्यान और प्राकृत भाषा में उपेन्द्रवज्रा छंद में रचा हुआ १२३ क्रमाङ्कवाला पार्श्वाख्यान के अतिरिक्त शेष ११५ आख्यानकों की रचना प्राकृत भाषा के आर्या छंद में है । कहीं कहीं अन्य छंदों के भी प्रयोग हैं परन्तु वह बहुत कम मात्रा में है । साथ ही प्रत्येक अधिकार के अंत में उन अधिकारों के विषयद्योतक एक एक वसन्ततिलका छंद भी
१. देवेन्द्रगणिवेमामुद्धृतवान् वृत्तिकां तद्विनेयः । गुरुसोदर्यश्रीमन्मुनिचन्द्राचार्यवचनेन ॥ 'कॅटलॉग ऑफ पामलीफ मेन्युस्क्रीप्ट्स इन द शान्तिनाथ जैन भण्डार कंबे' ओरयेन्टल इन्स्टीट्यूट - वडोदरा द्वारा प्रकाशित पृ० ११३ ११४ | श्री नेमिचन्द्रसूरिरुद्धतवान् वृत्तिकां तद्विनेयः । - वही पृ० ११५ । संघवी पाडा भण्डार - पाटण के क्रमाङ्क ३६३ में तथा संघ भण्डार पाटण के क्रमाङ्क ५२ में नेमिचन्द्रसूरि नाम है जब कि संघवी पाडा भण्डार पाटण क्रमाङ्क ३८७ तथा तपागच्छ भण्डार पाटण क्रमाङ्क ११ में देवेन्द्रगणि नाम मिलता है ये सभी प्रतियां साडपत्र पर लिखी हुई है ।
२. प्रस्तावना के लेखक ने ग्रन्थकार नेमिचन्द्रसूरि को सवृत्तिक आख्यानकमणिकोश के कर्ता बताया है । यह ठीक नहीं कारण नेमिचन्द्रसूरिने तो केवल ५२ गाथावाला मूल ग्रन्थ ही रचा है । साथ ही इसी प्रस्तावना के लेखकने नेमिचन्द्रीय महावीरचरित्र का रचना संवत् १९४० बताया है। यह भी ठीक नहीं उसका रचनासंवत् ११४१ है । उनका यह कहना भी ठीक नहीं कि उन्हें उपलब्ध प्रतिओं के अतिरिक्त उस ग्रन्थ की अन्य कहीं भी प्रति नहीं मिलती। क्यों कि खेतरवसी पाडा जैन ज्ञान भण्डार-पाटण में
मिलती है। देखो पसनस्थ जन भाण्डागारीय ग्रन्थसूची ओरियेन्टल इन्स्टीटयूट्
इस की ताडपत्रीय प्रति . १२०९ में लिखी हुई वडोदरा द्वारा प्रकाशित पृ. २८९-९० ॥
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