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परिशिष्टपरिचय और आख्यानकमणिकोश मूलग्रन्थ
आख्यानकमणिकोश मूल
मूल ग्रन्भ की रचना प्राकृत भाषा में केवल बावन गाथा में आर्या छंद में हुई है। इस में ४१ अधिकार हैं। प्रत्येक अधिकार के प्रतिपाद्य विषय के साधक आख्यानकों के कथानायक अथवा नायिका का नाममात्र का कथन उन उन अधिकार की मूल गाथा में किया है । इस से यह सूचित होता है कि ये कथाएं अन्य काग्रन्थों में और कोपर्ग पर्याप्तमात्रामें प्रसिद्ध थीं। कोप के रचयिताने केवल उन उन कथाओं को विविध विषयों के साथ संबद्ध करके उन कथाओं का विषयदृष्टिसे वर्गीकरणमात्र किया है । एक यह भी प्रयोजन है कि ग्रन्थ छोटा होनेसे स्मृति के ऊपर विशेष भार नहीं पड़ता और विषयकी दृष्टिसे ननत्कथाओं का वर्गीकरण श्रमगों को याद रखना सरल हो जाता है । टीकाकारने उन सूचित कथाओं का विवरण अपनी काव्यात्मक शैलीमें किया है।
मूल ग्रन्थ के ४१ अधिकारों में कुल १४६आख्यानकों का निर्देश ग्रन्थकार ने किया है । उनमें से १९ आख्यानक ग्रन्थगत अन्यान्य आख्यानकों में आजाने से वृत्ति में केवल १२७ अख्यानको का ही क्रमाङ्क दिया हुआ है। शेष १९ आख्यानकों का नामोल्लेख करके वृत्तिकार ने उन्हें किन आख्यानको में से लिये जाँय इसका सूचन भर किया है। उन १९ सूचित आख्यानों का विवरण इस प्रकार है
सूचित आख्यान
कहां १ धन्यकाख्यानक (पृ. २०)।
दवदन्न्याख्यानकों (आख्यानकक्रमा -१३)। २ मनोरमाख्यानक (पृ. ६५)।
सुदर्शनाख्यानकर्म ( आ. क्र. ४३)। ३ वीरमत्याख्यानक (पृ.७१)।
दवदन्त्याख्यानको (आ. क्र. १३)। ४ श्रेणिकाख्यानक (पृ. ९५)।
सेडुवकाख्यानकों (आ. क्र. ३३)। ५ मिण्ठाख्यानक (पृ. १३५)।
नूपुरपण्डिताख्यानकमें (आ. क्र. ७१)। ६ मृगावत्याख्यानक (पृ. १६४)।
चित्रप्रियाख्यानकमें (आ. क्र. ५३)। . ७ माथुराख्यानक (पृ. १८५)।
भावटिकाख्यानक (आ. क्र. ७३) अन्तर्गतजिनदत्ताख्यानकमें । ८ क्षुल्लकमुन्याख्यानक (पृ. २२६)।
क्षपकाख्यानकों (आ. क्र. ५०)। ९ नन्दिपेणाख्यानक (पृ. २२६)।
शौर्याख्यानकों (आ. क्र. १९)। १० चण्डरुद्रशिष्याख्यानक (पृ. २२६)। चण्डरुद्राख्यानकों (आ. क्र. ५२)। ११ दामनकाख्यानक (पृ. २३८)।
दामनकाख्यानकों (आ. क्र. ४५)। १२ चन्द्रावतंसकाख्यानक (पृ. २४१)। मेतार्याख्यानकमें (आ. क्र. १२६)। १३ नन्दिपेणाख्यानक (पृ. २७१)।
शौर्याख्यानकमें (आ.क्र. १९)। २२६ पं. २५ ॥३॥ १॥ २५३ २४९ मुसरय ससुरय" ३२९ ९ प्रयत्तेण पयत्तेण । २१. ८ कमलामेला कमलामे- २५५ ३२२ तवाणु भा तवाणुभा ३५१ शीर्षके पतनदुःख पनतदुःख
स लास
२६१ १० सुन्नत सुन्नत ३७० २५ रमणीया 'रमणोयाः १६ कमला कमला , १५ निन्वाहं निम्याहं १. यद्यपि मुद्रणमें अतिमगाथाका क्रमांक ५३ है किन्तु ३१ काकवाली (पृ. २२६] मूलगाथा मूलग्रन्थकी नहीं अपितु टीकाकाररचित है।
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