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ग्रंथसमर्पण मैं देह और धर्मसे जिनका पुत्र हूं, उन श्रमणीसंघमें चमकती हुई, त्रिरत्नोंसे समृद्ध ८३ वर्षीया श्रमणी रत्नश्री के करकमलोंमें, उनके द्वारा कृत धर्मोपकारका कुछ स्मरण, पुत्रसुलभ माताके प्रति कुछ राग, बालभावका कुछ अनुभव, एवं सापेक्ष-निरपेक्षभावमें दोलायमान होता हुआ, न जाने किसकिस भावका अनुभव करता हआ अत्यन्त हर्षाविष्ट व आत्मानंदमें निमग्न , हो कर ६७ वर्षीय पुण्यविजय इस आख्यानकमणिकोशको अर्पण करके कुछ कृतार्थताका अनुभव करता हूं। ___अपनी धर्मजननी होनेके कारण आचार्य हरिभद्र पद पद पर याकिनी महत्तराको याद करते थे। भगवान् महावीरने देहजननीके वात्सल्यकी यादमें जब तक जननी जीती रही गृहस्थभावको, नही छोडा । इस प्रकार इन महापुरुषोंने जिस जननीपदके प्रभावको प्रकाशित किया है वह जननीपद अत्यंत प्रकर्षके साथ प्रकाशित हो कर विजयी हो ।
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