________________
३९
४० १
३
१
२
४१
४२
४४
४५
४६
४७
३
४
५५
५६
४
१
२
४
१
२
१
३
१
२
१
30
४
२
३
चित्तवि अपिव
सोवि चित्त ण केण पि अपिव
अट्ठाउ
N
चित्तन्तें
पत्त मुसारिउ मसि मिलिउ
होवि लिहे ना खीणु
तें विस
कहि कहि लीएणु
रहिअ
किअ
णाहिउ
गुरु-वअण-अमिअ-रस
४८
२
५० २ विण्णि
५२
५३
पिविअउ
मण निम्मल
तें चीएहु फुड सथाविअउ
जिम लोण
वि ठाइ
ण आणइ बम्हा
अम्हा
आलिउल
३ साद्धह साद्ध
आइ
भान्ती
गाढालिङ्गमाण सो राज्ज
तोज्झ
67
एव्वें तु दीठन्तडी
Jain Education International
३५
३६
३७
३८
४०
४१
४२
४३
३ चित्तु विअप्पिउ
४
५२
१ उवसंठिअ
३
चित्तउँ
सो विचित्तु णउ केण - वि कप्पिउ.
१
२ पाढंता वउ खीणु
तें वि
पत्तमुसारिउ मसि - मलिउ
४
१ वाहिअ
१ ण- याणइ बम्हहँ
२ अम्ह
४४ २ अरिउल
४६
२ वण्ण
४८
३ एवँहिँ तुट्टिअ भंतडी
४९
३ सद्दों स
५१ २
कहिँ उइअउ कहिँ लीणु
२ काइँ
४ साहिउ
१ गुरु उवएसें अमिअ-रसु
२
पीअउ
१ णिम्मलु
३ एवँ चित्तु फुडु ठाविअउँ
१ लोणु
२ विलाइ
४ आणइ
मंती
For Private & Personal Use Only
३ गाढालिंगणु माणसु जेत्थु
१
तुहुँ
www.jainelibrary.org