________________
एवहिँ तुट्टिअ एवँहिँ बुद्ध-रूअउ एवँहि बुद्ध-रूउ लहु
एवँ हँ लब्भण
एवँ हँ सअलु जाणु एवँ हँ सिद्धि
हुणिय-मणु T
हु संसार ह
हु सो परम
कए पअ - पाणिय
कज्जें विरहिउ
कप्प - रहिउ सुह
कम्मु तत्थ खउ करुण-रहिअ जो
कवँसो उ गुणेहिँ
कहि उप्पज्जइ
कालें गलतऍ
किं तहिँ दीवें
किं तहिँ तित्थ
को पत्तिजइ
को पुज्ज ह
को-वि सुतंत
ख खर्णे किंपि
खवणेहिँ जाण
खाअत पिअं
खेत्तु पीg
गम्मागम्मु ण जाणइ
Jain Education International
४८.२
१०३.२
१०४. २
१४१.२
३१.१
४४.२
९४.२
९१.१
१०६.२
४७.२
९७.२
२.१
१००.१
९४.३
१४.१
१०१.१
२४.२
१८.२
१०.१
११.१
५४.१
१४७.२
८.२
१३०.२
६.२
४४.१
९३.३
१२३.२
58
गवँणागवँणु
गहिऊण धम्मु
गाढालिंगणु माणसु गुरु-उवएसें
गुरुअ- अणु संसिद्धउँ गुरु-वअणेंहिँ दिढ
गुंज- अण-मज्झें
घरे घरे कहिउँ
घरेहिँ बइसि
चंडालों घरे
चंद सुज्ज घसि चित्त-विसुद्धिऍ चित्तहिँ सअलु जगु चित्तहों पर
चित्तहाँ मूलु
चित्ताचित्त वि परिहरहों
चित्ताचित्तु ण
चित्तु एउ जो
चित्तु थिरु जउ
चित्तेक्कं सअल
चित्तें चित्तु जड़
चित्तें बढ़ें बज्झइ
चेल्ल भिक्खु
छड्डों जु सहजु छड्डों बेण्णि म छाड्डों रे आलिक्का
जइ. उआउ उबाएं
जइ कहमि उ
For Private & Personal Use Only
३२.२
१०७.१
५२.२
४०.१
८०. १
६०.२
१६१.२
१२५.१
४.२
१०९.२
३१.१
८२.२
११६.२
७७.१
२४.२
६०.१
१२१.१
११६.१
११७.२
२२.२
११७.१
८८.२
८.१
७५.१
९४.२
११.२
१४ ख. १
१०८.१
www.jainelibrary.org