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३० वर्ष की उम्र में घर छोड कर बन का मार्ग लिया । सभी बाधायें स्वयमेव दूर हो गई। बारह वर्ष पांच इसके पश्चात वे करीब साढ़े बारह वर्ष की प्रखंड माह और पन्द्रह दिन की कठोर तपस्या करने के पश्चात तपस्या में लीन हो गये।
ऋजुकूला नदी के किनारे वैशाख शुक्ला दशमी के दिन वमान अधिकतर मौन रहते थे । इन बारह
चार घातिया कर्मों को नाश कर महावीर ने वेवल ज्ञान
प्राप्त किया। इस समय आपकी अवस्था ४२ वर्ष की वर्षों में उन्हें अनेक उपसर्ग सहने पड़े । यह एक
थी। अब वे केवली हो गये थे । वे भूत, भविष्य एवं वास्तविक तथ्य है कि प्रत्येक महान कार्य के बीच में
वर्तमान के दृष्टा एवं ज्ञाता हो गये थे। इसके बाद कोई न कोई अड़चन अवश्य पाती है । मोक्ष मार्ग
पाप ३० वर्ष और जीवित रहे तथा अपने उपदेशों के के विचरण में महावीर को भी अनेकों कठिनाइयों का
द्वारा संसार को कल्याण का मार्ग दिखाते रहे। स्ट कर मुकाबला करना पड़ा।
भगवान महावीर अनेक देश देशान्तरों में बिहार एक बार भगवान किसी भयंकर जंगल में कायोत्सर्ग
करके धर्मोपदेश देने लगे । वे जहां पहुंचते वहीं अलौकिक के लिये खड़े थे। उसी मार्ग से एक ग्वाला दो बैलों को
समवसरण (सभाभवन) की रचना होती। जिसमें १२ लेकर गुजरा । उसने बद्धमान से कहा "मैंरे बैलों की
कक्षाएं होती थीं। अपनी सभा में सभी को पाने की सम्भाल रखना' और स्वयं गायों का दूध दुहने चला
अनुमति थी । ऊँच, नीच, जाति-पाति एवं गरीब-अमीर गया। जब वापस पाया तो बैलों को न पाकर ग्वाले के
बिना वैर भाव के धर्मोपदेश सुनते और अपना जीवन क्रोध का ठिकाना न रहा। वह महावीर से कहने लगा
सफल बनाते । भगवान महावीर अर्द्धमागधी भाषा में "मो बाबाजी मेरे बैल किधर गये, सुनते नहीं क्या ?"
अपना प्रवचन करते । जिसे सभी श्रोतागरण प्रासानी से एक बार भगवान श्वेताम्बरी नगरी की प्रोर चले।। समझ लेते थे। आपके शासन में सिंह और मृग एक ही ग्राम वासियों ने उन्हें बताया कि इस मार्ग से न जाइये घाट पर पानी पिया करते थे अर्थात हिंसक पशु तक अपनी इसमें एक भयंकर विषधर रहता है। महावीर योगी थे। जातिगत क रता को छोडकर भक्ति से भगवान के आदेश अहिंसा के मसीहा थे । वे जानते थे कि जो स्वयं शुद्ध सुनते थे । इस तरह भगवान काशी, कोशल, पंचाल, होता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता , वे उधर कथिंग, सिन्धू, कुरुणांगल, कम्बोज, गांधार मादि देशों ही चल दिये जिधर विषधर का बिल था । जब महावीर में बिहार करते हुये अन्त में परवा नगरी में पधारे । उस सर्प के बिल के पास से बिहार कर रहे थे तो वह और वहां से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में अर्थात क्रोधित होकर अपने बिल से निकला और लगा महावीर अमावस्या के प्रातःकाल लाभ किया। को डसने । उसने पूरे वेग से महावीर पर प्रहार किया।
. महावीर ने अहिंसा एवं सत्य का जो उपदेश दिया। लेकिन जब वह उनका कुछ भी नहीं बिगाड सका तब
उसमें भारत में सभी वर्गों में शान्ति एवं सद्भावना महावीर ने उसे आदेश दिया। महावीर के वचनामृत से स्थापित हो गयी। ऊँच-नीच का भेद भाव समाप्त हो उसे अपने पूर्व भव का स्मरणा हो गया और वह गया और सभी को धर्म पालन की सुविधा प्राप्त हो गयी। महावीर का भक्त बन गया।
देश में शिक्षा का प्रचार फैल गया और लोग अपने भगवान महावीर का ध्येय सभी प्राणियों को सूमार्ग प्रापको सुशील समझने लगे। पर लगाना था। उनका अवतार ही प्राणी मात्र के उद्धार ऐसे शान्ति एवं अहिंसा के अवतार भगवान महावीर के लिये हरा था। इसीलिये कष्टों तथा बाधानों की की फिर से महावीर जयन्ती आ रही है। इसलिये हम परवाह किये बिना अपने ध्येय की ओर बढते रहे। सब फिर उनके ऊच्च पादशों पर चलने का प्रयत्न करें। भगवान के तप, त्याग, तेज और प्रात्म बल के सामने जिससे हमारा जीवन शान्त एवं निरापद बन सके।
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