SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७ व्यक्तियों के सुख साधनों को देखते हैं तो उन्हें ईर्षा होती है और वे भी चोरी या बेइमानी से पैसा कमाकर वैसे ही सुख साधन प्राप्त करना चाहते हैं । यही कारण है कि रूस जैसे समाजवादी देश तथा अमरीका जैसे सम्पन्न देश में भी जुर्म करने वालों की संख्या कम नहीं है । इस विषम स्थिति का एक ही उपाय है, वह यह कि जिनके पास अधिक धन है उनके धनको ( छीनने के बजाय ) निरुपयोगी कर दिया जावे। इसके लिए देश की उत्पादन क्षमता और प्रति व्यक्ति प्रसत प्राय का विचार करते हुए जीवन निर्वाह का एक स्टैंडर्ड (Standard of Living) नियत किया जावे और सम्पूर्ण देश को एक कुटुम्ब के समान समझकर ऐसी योजना बनाई जावे कि जिन २ वस्तुत्रों व सुख साधनों का उस स्टेंडर्ड के अनुसार उत्पादन किया जावे वह इतनी मात्रा में हो कि प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकतानुसार उपलब्ध हो सके तथा विशेष सुख सामग्री तथा विलासिता की वस्तुओं का उत्पादन नहीं होने दिया जावे और यदि पहले से उत्पादन हो रहा हो तो निकास कर दिया जावे, रेलों में केवल एक क्लास हो । ताकि एक धनवान को भी वे ही और उसी क्वालिटी की वस्तुऐं और सुख साधन उपलब्ध हो सकें जो एक साधारण प्राय वाले व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं । ऐसा करने पर धनवानों का, साधारण लोगों के स्तर से बेशी धन निरुपयोगी ही नहीं होजावेगा प्रत्युत देश की अनेकों समस्याऐं जैसे मंहगाई, ब्लेक मारकेट से पैसा कमाना, भ्रष्टाचार, सत्ता की भूख, अनाव Jain Education International श्यक उद्योग धंधों के स्थापित किये जाने से होनेवाली विदेशी विनिमय की कमी श्रादि, अपने प्राप हल हो जायेंगी, बहुतसी शासन व्यवस्था अनावश्यक हो जावेगी और शासन खर्च कम होजायेगा । जबकि वर्तमान स्थिति में ज्यों ज्यों अधिक से अधिक अच्छा इलाज किया जा रहा है बीमारी मौर बढ़ती जारही | परन्तु जीवन निर्वाह का स्टेंडर्ड ( Standard of Living ) नियत करने से पूर्व तत्संबंधी भ्रामक धारणाएँ दूर होजानी आवश्यक हैं प्रतः मैं विलासिता प्रधान प्राजकल को सभ्यता के संबंध में महात्मा गांधी के कुछ शब्द उद्घृत कर देना उचित समझता हूँ, "यह सभ्यता धर्म है पर इसने यूरोपवालों पर ऐसा रंग जमाया है कि वे इसके पीछे दीवाने हो रहे हैं", "जो लोग हिंदुस्तान को बदल कर उस हालत पर लेजाना चाहते हैं जिसका मैने ऊपर वर्णन किया है, वे देश के दुश्मन और पापी हैं ।" अपरिग्रहवाद और समाजवाद का जो तुलनात्मक विवेचन किया गया है उससे प्रगट होगा कि दोनों का अलग २ क्षेत्र है। जहां अपरिग्रह वाद का लक्ष्य व्यक्ति है, समाजवाद का लक्ष्य समाज है । परन्तु क्योंकि व्यक्ति समाज का अंग है अतः समाजवाद अपने ऊँचे आदर्श को प्राप्त कर सके इसके लिए आवश्यक है कि समाज के अंग (व्यक्ति) या कम से कम वे लोग, जिनके हाथ में राज्यसत्ता हो, अपरिग्रहवादी भी हों । जैन-धर्म सर्वथा स्वतन्त्र है । मेरा विश्वास है कि वह किसी का अनुकरण नहीं है । और इसलिए प्राचीन भारतवर्ष के तत्व ज्ञान का, धर्म पद्धति का अध्ययन करने वालों के लिये वह बड़े महत्व की वस्तु है । -डा० हर्मन जैकोवी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014041
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1964
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy