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________________ (2) उपोद्घात नियुक्ति- उपोद्घात में उन सब विषयों की व्याख्या की जाती है जो किसी पुस्तक की प्रस्तावना में अपेक्षित होती हैं। (3) सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति-इसमें भूलसूत्र का स्पर्श कर सूत्र में आए शब्दों की व्याख्या की जाती है। ___ यद्यपि नियुक्तियों में आगमिक विषयों की व्याख्या करने वाली तीनों प्रकार की नियुक्तियों का उल्लेख दृष्टिगत होता है तथापि वहां निक्षेप को सर्वाधिक महत्ता प्रदान की गई है। __ नियुक्ति' में जिस विशिष्ट पद्धति द्वारा पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की गई है अथवा उनका अर्थ-निर्धारित किया गया है उसे जैन परिभाषा में 'निक्षेप' के नाम से जाना जाता है। जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान में क्षेपण किया जाए या उपचार से वस्तु का जिन प्रकारों से आक्षेप किया जाए उसे निक्षेप कहते हैं। निक्षेप-पद्धति जैन साहित्यकारों की मौलिक कल्पना है जो अन्य किसी साहित्य में दिखाई नहीं देती। यह पद्धति अत्यंत प्राचीन है। स्थानांग, भगवती और अनुयोगद्वार सूत्र में यह पद्धति देखी जा सकती है। निक्षेप, न्याय और स्थापना ये पर्यायवाची शब्द हैं। निक्षेप शब्द 'नि' और 'क्षेप' इन दो पदों के मेल से बना है। जिनभद्रगणि ने 'नि' शब्द के तीन अर्थ किए हैं ग्रहण, आदान और आधिक्य तथा 'क्षेप' का अर्थ किया है प्रेरित करना। जिस वचनपद्धति में नि/अधिक क्षेप/विकल्प हैं वह निक्षेप है। जिनदासगणिमहत्तर ने 'निक्षेप' की परिभाषा इस प्रकार दी है—जिसका क्षेप/स्थापना नियत और निश्चित होता है वह निक्षेप है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार जो युक्ति मार्ग से प्रयोजनवशात् वस्तु को नामादि चार भेदों में क्षेपण करे, वह निक्षेप है। 42 षट्खण्डागम की धवला टीका में आचार्य वीरसेन ने निक्षेप का अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट लक्षण प्रस्तुत किया है। उनके अनसार संशय. विपर्यय और अनध्यवसाय में अवस्थित वस्त को उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है वह निक्षेप है। 43 दूसरे शब्दों में, जो अनिर्णीत वस्तु का नाम स्थापना, द्रव्य और भाव द्वारा निर्णय कराए, वह 'निक्षेप' है।4 अथवा अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण करके प्रस्तुत अर्थ का निरूपण करना 'निक्षेप' है। 45 संक्षेप में जैन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्यान-अर्थ-निर्धारण की वह विशिष्ट पद्धति जिसमें किसी एक शब्द के संभावित अनेक अर्थ करने के बाद उनमें से प्रसंगानुकूल किसी एक निश्चित अर्थ का निर्णय किया जाता है, निक्षेप-पद्धति कहलाती है। 41 जैन न्याय-शास्र में इस पद्धति को बहुत महत्व दिया गया है। निक्षेप के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार प्रकार होते हैं। इसलिए किसी भी शब्द की व्याख्या प्रायः नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों से की जाती है। परंतु नियुक्तियों की रचना में प्रायः सात प्रकार (नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव) के निक्षेपों का वर्णन मिलता है। उदाहरणतः दशवैकालिक सूत्र में 'दशवैकालिक' शब्द की व्याख्या हेतु 'दश' और 'काल' शब्द का निक्षेप-पद्धति से विचार किया गया है। 'दश' के पूर्व 'एक' शब्द का निक्षेप करते हुए एक के नाम, स्थापना, द्रव्य, मातृकापद, संग्रह, पर्याय और भाव ये सात प्रकार बताए गए हैं। 49 'दशक' का निक्षेप छ: प्रकार का कहा गया है—नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । काल के दस भेद बताए गए हैं—बाला, क्रीड़ा, मंदा, बला, प्रज्ञा, हायनी, प्रपंचा, प्रग्भारा, मृन्मुखी और शायिनी। ये प्राणियों को दस अवस्थाएं हैं।" इसी प्रकार काल, द्रुम, पुष्प, धर्म, श्रामण्य, पद, काम, क्षुल्लक,", आचार, कथा, एक,62 छ:, जीव, निकाय, शास्त्र वाक्य, विनय, भिक्षु, आदि शब्दों की भी निक्षेपपद्धति से व्याख्या की गई है। संसार का सारा व्यवहार भी निक्षेप पद्धति से ही चलता है। नियुक्तिकार भद्रबाहु ने नियुक्तियों की रचना में इसी पद्धति का आश्रय लिया है। संभव है कि निक्षेप की इस व्याख्या के कारण ही उसके आधार पर किए जाने वाले शब्दार्थ निर्णय-निश्चय को की संज्ञा दी गई हो। नियुक्तियों की संख्या नियुक्तियां जैन-आगमों पर रचित व्याख्याग्रंथ हैं। यद्यपि जैन आगमों की संख्या कम से कम 32 मानी जाती है तथापि सभी आगमों पर नियुक्तियां नहीं लिखी गई, अपितु कुछ ही आगमों पर लिखी गई हैं। जैनसाहित्य में 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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