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________________ Tayl, Madras, 1937, P-328 Sr.No. 1657.12 उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि ज्योतिर्विज्ञान (Astronomy ) की कोई कृति श्री राजादित्य के नाम की है। कृति के अध्ययन के बिना यह कहना संभव नहीं है कि यह कृति चर्चित राजादित्य की ही है अथवा श्री राजादित्य कोई भिन्न व्यक्ति हैं। कुमुदेन्दु : कुमुदेन्दु कन्नड़ भाषी महान् दिगम्बर जैनाचार्य थे। खेद का विषय है कि उनका कृतित्व आज भी जैन समाज के सम्मुख नहीं आ सका। डॉ. नेमीचन्द्र शास्त्री ने अपनी पुस्तक 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा' में जैन रामायण के कर्ता के रूप में एक कुमुदेन्दु (275 ई.) का नामोल्लेख किया है। हम यहां सर्व भाषामयी कन्नड़ काव्यग्रन्थ 'श्री भूवलय' के कर्ता कुमुदेन्दु के विषय में चर्चा करेंगे । श्री मालप्पा के लेखानुसार कुमुदेन्दु बैंगलोर से 38 मील दूर नंदी हिल के समीप स्थित मैलावल्ली के निवासी थे । भूवलय के अंतरंग साक्ष्यों के आधार पर कुमुदेन्दु मान्यखेट के राष्ट्रकूट वंशीय शासक अमोधवर्ष, नृपतुंग एवं गंग नरेश शिवाजी के गुरु थे। 13 षट्खण्डागम की विख्यात धवला टीका के संपूर्ण होने (816 या 826 ई०) के 44 वर्षों के उपरांत इस ग्रंथ का प्रणयन किया गया। परमपूज्य आ. देशभूषणजी महाराज द्वारा लिखित भूवलय परिचय पुस्तिका में इस ग्रंथ में निहित गणित के संख्या संबंधी लाघव की झलक मात्र प्रस्तुत की गई है एवं यत्र तत्र यह संकेत किया गया है कि ग्रंथ में उच्चकोटि का गणित निहित है। यहां यह उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री गणितज्ञ नहीं थे एवं पुस्तिका के लेखन के समय तक संपूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद भी न हो सका था। क्रमचय एवं संचय के सिद्धांतों द्वारा ग्रन्थ में 18 भाषाओं को जिस रूप में व्यवस्थित किया गया है वह स्वयं रचनाकार की गणित विषयक पारंगता का द्योतक है। संपूर्ण ग्रन्थ के उपलब्ध होने तक हमें डा. मालप्पा के ग्रन्थ के विषय में कहे गये निम्न शब्दों से ही संतोष करना होगा जो कि इसमें निहित गणित पर प्रकाश डालते हैं । 'For the History of Indian Mathematics, it is an important source. The recent studies in Jaina Mathematics and Astronomy, on the basis of Virasena's Dhavala tika show that as early as the 9th c. if not earlier, India had developed the Theory of Place Value, Laws of Indices. Lograthims, Special methods to deal with fractions. Theories of Transformation, Geometrical and mensuration formulas, Indefinite processes and Theory of Infinity (Conticipating by centureis the western Mathematicians). the value of Pi (-), Permutation and combination etc. Kumudendu's work seems to be far more advanced than Virasena's and requirs deep study." 14 डॉ० मालप्पा के उक्त कथन से गणित इतिहासज्ञों हेतु इस ग्रन्थ की उपयोगिता स्वतः परिलक्षित होती है । मात्र राजादित्य एवं कुमुदेन्दु ही नहीं, अपितु अन्य भी अनेक गणितज्ञों ने कन्नड़ में ग्रन्थ रचना की है । चन्द्रम नामक किसी विद्वान् ने कन्नड़ भाषा में 'गणित विलास' की रचना की है। गणित विलास की 2 प्रतियां 15 जैन भवन, मूड़विद्री के भंडार में ग्रं. सं. 89 की एवं जैन मठ-मूड़बिद्री के भंडार में ग्र.सं. 169 की प्रति पूर्ण एवं शुद्ध है । कन्नड़ भाषा एवं कन्नड़ लिपि में लिखी इस प्रति में 32 पत्र हैं। इसी नाम के विद्वान् द्वारा लिखित 'लोक स्वरूप' की अनेक प्रतियां कर्नाटक के भण्डारों में उपलब्ध हैं । अतः ऐसा प्रतीत होता है कि चन्द्रम भूगोल एवं गणित के अधिकारी विद्वान् रहे थे। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के समुचित अध्ययन की तत्काल आवश्यकता है। डॉ० नेमीचन्द्र ने कवि राजकुंवर नामक व्यक्ति द्वारा कन्नड़ भाषा में 'लीलावती' शीर्षक गणित ग्रन्थ लिखने का उल्लेख किया है । " श्री सुपार्श्वदास गुप्ता द्वारा प्रणीत जैन सिद्धांत भवन, आरा के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची पृ. 8 में संस्कृत भाषा एवं कन्नड़ लिपि में लिखी अज्ञात दि. जैनाचार्य की 'गणित सूत्र' नामक कृति का उल्लेख है। 17 वर्तमान में यह कृति अनुपलब्ध है। इस लघु प्रति का अन्वेषण भी आवश्यक है । 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014040
Book TitleWorld Jain Conference 1995 6th Conference
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain
PublisherAhimsa International
Publication Year1995
Total Pages257
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size23 MB
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