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कला और नैतिकता
ABSTRACT
जिस प्रकार अन्य वस्तुओं के प्रत्यय हैं उसी प्रकार नैतिकता भी एक प्रत्यय है इसका प्रस्फुटन अनेक वढतुओं की अंश अंश सुन्दर आकृतियों में हुआ है । पर ये अलग-अलग सुन्दर वस्तुएं नैतिक अथवा अनैतिक नही है केवल सुन्दरता युक्त कलाकृतियां है । पूर्ण सौन्दर्य अपने आपमें स्वयं ही एक प्रत्यय है और संसार की सुन्दर से सुन्दर वस्तु भी उसकी पूर्ण रूप से प्रकट नही कर सकती है । अतः हम अधिक शिवत्व सौन्दर्य को देखते हुए क्रमश नैतिकता की अभिधारणा का ही विकास करते हैं । कलाकृतियों का यह सौन्दर्य देहा सिक्त होते हुए भी कान्तीमान है तथा शिवत्व की एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी पर चढ़ते जाने की प्रक्रिया है । अतः कलाकृतियों के कारण सौन्दर्य है और सौन्दर्य स्वयंभु शिवत्व में समाहित है तो वह अनैतिक हो नही सकता ।
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इसके लिये कालीदास ने भी कहा है -
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न रूपम् पापवृत्तये यदुच्यते पार्वति, अव्यभिचारि तद्वचः
डToअल्पना उपाध्याय चित्रकला विभाग
माधव महाविद्यालय उज्जैन मoyo
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