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विपणन नैतिकता बनाम उपभोक्तावाद
* डॉ. एस.सी. मूणत ** डी. मेहता
आज के उदारीकरण एवं भूमण्डलीकरण के दौर में कुछ शब्द अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत् हैं. उस सूची में एक शब्द नैतिकता भी शामिल किया जा सकता है। हजारों देशी-विदेशी कंपनियाँ अपने उत्पादों, सेवाओं को ग्राहकों तक पहुँचाने में एवं उनकी निर्णय क्षमता को प्रभावित करने में दिन-रात लगी हुई हैं। सबका ध्येय एक ही है कि कैसे भी अपने बाजार का पूर्ण दोहन करते हुए उपभोक्ता को प्रभावित करना।
उपरोक्त परिदृश्य में प्रस्तुत शोधपत्र का उददेश्य, विपणन नैतिकता एवं उससे जुड़े उपभोक्ता पर पड़ने वाले प्रभावों-दुष्प्रभावों की समीक्षा करना है।
सर्वप्रथम यदि हम विपणन और नैतिकता शब्द की अवधारणा को स्पष्ट करने की कोशिश करें तो हम पायेंगे कि विपणन विचार एक दर्शन है, एक मनःस्थिति है, एक चिन्तन का तरीका है, जो यह बताता है कि ग्राहकों की आवश्यकता तथा संतुष्टि एक. कंपनी के अस्तित्व को आर्थिक-सामाजिक औचित्य है। आधुनिक विपणन अवधारणा में "ग्राहक अभिमुखीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। विपणन जगत में नैतिकता शब्द का अर्थ अच्छाई, ईमानदारी या आदर्शवाद की स्थितियों, सिद्धांतों एवं कंपनियों द्वारा संबंधित सभी पक्षों यथा विभिन्न वितरण वाहकों एवं उपभोक्ताओं के साथ किए जाने वाले उचित व्यवहार से है।
आज विपणन नैतिकता सभी प्रकार के उपभोक्ताओं को एवं उनकी क्रय निर्णय क्षमता को मुख्य रूप से भावनात्मक एवं संवेगात्मक ढंग से प्रभावित कर रही है। आज के दौर की सफल विपणन नीति का सार यह है कि उपभोक्ता को सपनों का संसार बेचा जा रहा है एवं कंपनी अपने विक्रय तथा लाभ के आंकड़ों को अधिकतम स्तर तक पहुंचाने में लगी हुई है। आधुनिक समाज में विपणन का मुख्य ध्येय मानवीय आवश्यकताओं को असीमित बताते हुए उपभोक्ताओं को येन-केन प्रकारेण पूर्ण कराने की ओर उत्प्रेरित कर देना मात्र रह गया है।
निरन्तर बढ़ती गलाकाट बाजारू स्पर्धा के दौर में "उपभोक्ता अपने को शिक्षित एवं जागरूक मानते हुए भी रवयं उगा-ठगा सा महसूस करता है। चाहे वह मूल्य संदर्भ हो,
। हो, वितरण वाहक व्यवहार संदर्भ हो अथवा "कस्टगर केयर' (ग्राहक संतुष्टि, गापक संदों में विक्रय पश्चात रोवा) की बात।
उदाहरण के तौर पर कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को दी जाने वाली "एक्सचेंज ऑफर्स", फायनेंस ऑफर्स एवं नित नए लाटरियों एवं ड्रा द्वारा लुभाए जाना, तत्पश्चात् स्थगन योजनाएँ (सीमित क्षेत्रों में) स्पष्ट दर्शाती हैं कि उपभोक्ता स्वयं भी इस होड़ में शागिल है और अपने सीमित संसाधनों और पारिवारिक दायित्वों को नजरअंदाज करते हुए विपणन की लुभावनी योजनाओं में अपने आपको नैतिक-अनैतिक मापदण्डों को नजरअंदाज करते हुए शामिल हो रहा है।
इन राव मुददों के नजर प्रस्तुत शोध पत्र आज के दौर की विपणन नैतिकता के परिदृश्य को चित्रित करने का एक छोटा सा प्रयास है।
- आचार्य माधन महाविद्यालय उज्जन
-- प्राध्यापक ...व्य.प्र.रा.. विक्रम नि.वि., उज्जैन
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