________________
उन्होंने ही सर्वप्रथम ग्राम और नगरों की रचना की थी। मनुष्य की जीविका प्रर्जन के लिए राजा ऋषभदेव ने छः कर्मों का निर्धारण किया— प्रसि मसि, कृषि विद्या, वाणिज्य और शिल्प उन्होंने | कर्म-व्यवस्था के आधार पर मानव समाज का इस रूप में विभाजन किया; ( 1 ) अपने ग्राम, नगर, देश की रक्षा करने वाले को 'क्षत्रिय' कहा गया। (2) जो व्यक्ति व्यापार, कृषि या पशुपालन करते थे उन्हें 'वैश्य' की श्रेणी में रखा और (3) श्रम या निर्माण कार्य में हाथ बटाने वाले को 'शूद्र' की संज्ञा दी गई। भारत में जो वर्ण-व्यवस्था प्राज विराजमान है उसकी जड़ें इस प्रकार सुदूर हजारों वर्ष पीछे जाती हैं। भगवान प्रादिनाथ ने सृष्टि रचना का जो स्वरूप प्रस्तुत किया उसके आधार पर वह 'ब्रह्मा' कहे जाने लगे। वे स्वयं 'इक्ष्वाकु' भी कहलाए गये, क्योंकि उन्होंने इक्षुदण्डों की उपयोग प्रयोग प्राविधि दर्शाई। उनका राज्य प्रयोध्या से हस्तिनापुर तक फैला हुआ था । ऋषभदेव के दो रानियाँ थीं, एक का नाम था यशस्वती और दूसरी का नाम था सुनन्दा | यशस्वती के 99 पुत्र थे और ब्राह्मी नाम की एक पुत्री थी । सुनन्दा रानी के दो संताने हुई पुत्र बाहाबुली और पुत्री सुम्दरी भगवान ऋषभदेव ने ब्राह्मी को 'वर्णमाला' का ज्ञान कराया। कहा जाता है ब्राह्मी लिपि तभी की पैदावार है। सुन्दरी को राजा ने 'गणितमाला' का ज्ञान प्रदान किया । राजा ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत थे जो चक्रवर्ती राजा बने और ऐसी धारणा है कि हमारे देश का नाम 'भारत वर्ष' उन्हीं के नाम पर पड़ा। वृतान्त है कि एक बार राजा आदिनाथ अपने रंगमहल में नीलांजना नामक अद्भुत सुन्दर नर्तकी का नृत्य देख रहे थे कि नृत्य करते-करते उसका प्राणान्त हो गया । जो पैर थिरक - थिरक कर घुंघरुषों की झंकार से सभी को विमुग्ध कर रहे थे, जो हाव-भाव लोगों का चित्त मोह रहे थे, जो परम सुन्दर शरीर रसिको के मन को आकृष्ट कर रहा था वह
Jain Education International
सभी निष्प्राण और निर्जीव थे और लोगों के नेत्र प्राश्चर्य से फटे थे। राजा भी इस दुर्घटना को देखकर दिल थाम कर बैठ गये और अविलम्ब ही उन्हें शरीर की मनुष्य की क्षणभंगुरता का ज्ञान हो गया। अब मुक्ति-मार्ग का पथिक बनने में उन्हें विलम्ब न लगा । भरत को अयोध्या का और बाहुबली को पोदनपुर का राज्य देकर वह सन्यस्त हो गये ।
भरत बहुत महत्वाकांक्षी राजा था। शीघ्र ही अपने बल पराक्रम से उसने दिग्विजय प्राप्त की, एक चक्रवर्ती राजा के रूप में उसकी धाक सर्वत्र फैल गई। परन्तु जब उसके चक्रवर्तित्व का समारोह अयोध्या में प्रायोजित हुआ तो 'चक्ररल' सिंहद्वार पर ग्राकर रुक गया, अयोध्या नगर में वह प्रविष्ट नहीं हुआ। भरत ने नीति-निमित्त विशेषज्ञों से इसका कारण जानना चाहा। उन्होंने राजा को बतलाया कि छह खण्डों पर अपना पूर्णाधिकार प्राप्त करने के बाद भी कोई स्थान ऐसा है जो अभी तक अविजित है और वह है पोदनपुर का राज्य - बाहुबली का राज्य भरत को तो अपना लोहा सभी से मनवाने के अहंकार का नशा चढ़ा हुआ था उसने तुरन्त बाहुबली के पास अपने दूत भेजे ताकि वह उसकी अधीनता स्वीकार करे नहीं तो युद्ध के लिए तैयार हो जाय। बाहुबली दूत का यह संदेशा सुनकर आश्चर्य और चिता में पड़ गये, भरत को इस अपार बिजय पर, चक्रवर्ती राजा होने पर भी सन्तोष नहीं, लालसाओं, इच्छाओं, तृष्णाओं के सागर में वह डूबता जा रहा है। मेरे छोटे-से इस तुच्छ राज्य पर भी उसकी बुरी नजर पड़ी है। प्रन्ततोगत्वा दोनों भाइयों की सेनाएं आमने-सामने रणक्षेत्र में आ डटीं युद्ध होने ही वाला था. रणभेरी बजने ही वाली थी कि बीच में मंत्रियों ने रक्तपात रोकने के उद्देश्य से दोनों भाइयों को द्वन्द्व युद्ध के लिए तैयार किया और यह तीन प्रकार से लड़ा गया
।
2/3
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org