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पुनः जरुरत है इस युग को
महावीर सन्देश की!
0 ज्ञानचन्द्र ज्ञानेन्द्र, ढाना (सागर)
इस जानी हिंसा डायन ने फिर अपना मुंह खोला सत्य ध्वंश करने असत्य ने दाग दिये हैं. गोला व अचौर्य का चीर चीर डाला है जिन चोरों ने नाच रहा है अनाचार हर गांव गली खोरो में क्रूर जमाखोरों से पीड़ित है मानवता देश की पुनः जरूरत है इस युग को महावीर संदेश की !
सज्जनता हो रही तिरस्कृत पर दुर्जन सम्मान पा रहे
धार्मिक, सार्वजनिक संस्थानों .... पर ऐसे ही लोग छा रहे जिसकी लाठी उसकी भैंस का प्राज बना माहोल है न्याय, क्षमा, करूणा विवेक का बेड़ा डांवाडोल है छल, फरेब, तिकड़म से वायु दूषित देश विदेश की पुनः जरूरत है इस युग को महावीर संदेश की!
कूकर, सूकर, बकरा, मुर्गी भोजन बन गई मछलियां त्राहि त्राहि करुणा क्रन्दन से गूज रही है गलियां चोरी, झूठ, बलात्कार भीषरण विष घोल रहा है नीति अनीति धरम अधरम का एक ही मोल रहा है आवश्यक है'जीयो और जीने दो के संदेश की! पुनः जरूरत है इस युग को महावीर संदेश की!
मदिरालय आबाद हो रहे। देवालय सुनसान पड़े हैं हाउस फुल टाकीजें फिर भी डान्स देखने अड़े खड़े हैं भूखों नंगों पर एयर कन्डीशन में खोजे जाते हल परिभाषायें बदल गई है मूत्र हो गया है जीवन जल भक्षक ने ही खाल प्रोढ ली है रक्षक के वेश की पुनः जरुरत है इस युग को महावीर सन्देश की!
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