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प्राणी मात्र को उद्बोधन दे विश्व मंत्री का पाठ पढ़ाया । तुम्हें देखकर जाति-विरोधी जीव परस्पर मिल गये हदय कमल खिल गये सम्पूर्ण विश्व में शांति छा गई उपदेशा मृत्त की लहर आ गई " किन्तु आज ! जब कि महावीर तुम्हारा ही शासन चल रहा है सत्य और अहिंसा का दिवाला निकल रहा है क्या करें रक्षक ही भक्षक बनकर हाथ को हाथ खा रहा है । चोरी, विश्वासघात और अनैतिकता मुंह बाये खड़ी है तलवार और बंदूक की नोंक पर
चाकू छुरे मौंक कर मच्छरों की तरह मनुष्य मारा जाता है नारी की अस्मत लूटी जाकर बूढ़े और बच्चों को अकारण ही मोत के घाट उतारा जाता है भगवान ! तुम्हारे ही शासन में अनुशासन का नाम नहीं है दिन दहाड़े चोरी, डकैती, लूटमार होती है हिंसा और युद्ध की भड़कती ज्वाला में मानवता रोती है । महावीर ! तुम फिर आगो और इस लोहू लुहान भारत भूमि को स्वर्ण-धाम बनायो ।
769-गोदीकों का रास्ता,
जयपुर-3
JERROS
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